Samajh na paye | समझ न पाए

 

समझ ना पाए हम जिंदगी को

 

क्या हकीकत है ? क्या फसाना ?

 

लाखों हैं यहां फिर भी सब तन्हा 

 

हर कोई ढूंढे ए मेरी जिंदगी तू कहां ?

 

समझ ना पाए ………

 

धन के पीछे भागा, तन की पीछे भागा 

 

भागे – भागे हम फिरे हैं मन कहीं ना लागा 

 

मन कहीं ना लागा 

 

कासे कहें ? काको कहें ?  अपनी यहां अफसाना 

 

जीना है अब तो बस एक ही बहाना 

 

समझ ना पाए ……….

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