Talash | तलाश

क्षितिज में क्षितरे सूरज की लालिमा

दिशाएं बदलके कुछ कह रहा है

तरुण था सूरज जो वृद्ध होने चला है

परिंदा एक आश लिए नभ में उड़ता

रोज जीवन की एक तलाश…. 

वह श्रांत क्लांत होके लौट रहा है ……..

कोई चहचहाहट नही है जो सुबह थी वैसी

एक अनोखा अनुभव मिला है ………

आज उसके पास शायद जो कहेगा…..

पर सुनने वाला यहां कोई नही

सबके पास है अपनी- अपनी कहानी 

यही तो जिंदगानी …….. है 

पेट की चिंता कहाँ से कहाँ…..

क्या से क्या बना देती है हमें

ठहर के सोचों तो लगता है

दुनियां इसी से चलती है

एक बड़ा कारण तो है जीने का 

जिसका नाम है रोटी 

बाकी सब बाद की जरूरत ।

 

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