Adhunatan me antarman

अधुनातन में अंतर्मन

 

अंतर्मन में चल रही है कथा 

 

देख के मन होता व्याकुल 

 

कहने को बहुत कुछ पर 

 

समय ना अनुकूल 

 

रह ना पाऊं ऐसी व्यथा  ।

 

छोरों की सीमा में उड़ती जाए 

 

बीच में कोई मिल ना पाए 

 

पढ़ने लगे हैं हम किस मर्ज में 

 

विषमता की खाई में क्या खो जाए 

 

खाइयां पाटे नहीं पटती 

 

जग में घटनाएं अब ऐसी घटती ।

 

अंधों ने अब दौड़ लगाई 

 

सवार है धून बेलगाम है घोड़ा 

 

अधुनातन के तन ऐसी चमकती 

 

बाकी मारे कौन  हथोड़ा 

 

तंत्र न कोई है मंत्र न कोई 

 

सबका है यही फलसफा 

 

चारों तरफ से हो मुनाफा  ।

 

सिम्मयूलेशन से भरमाया जग

 

वास्तविकता कहीं गुमशुदा है

 

तकनीकों की माया है छाया

 

सारी  जनता को है  भरमाया 

 

जादूगर हैं हैकर्स सारे 

 

दिन में दिखलाते ये तारे

 

मायावी रावण खड़े हो जाते

 

मरता नहीं कितना भी मारे ।

 

 

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