Ak Bund

 

समंदर की अनंत जल राशि 

 

महासागर  का  एक  बुन्द 

 

भावनाओं  के  समंदर  में 

 

सबके  इच्छाओं की लहरें 

 

मारती ही  रहती है हिलोर 

 

जन्म -मृत्यु के ओर -छोर 

 

जीवन  की  रेखाएं  खींच 

 

धधकती ज्वालाओं के बीच 

 

अंतरात्मा की अनंत शांति 

 

भीतर में जगाता है  क्रांति 

 

हृदय के द्वार खोलना सीखा 

 

दुख व अकेलेपन ने  सदा

 

सच का आइना दिखाया है

 

विश्वास है सबका खजाना 

 

उसने ही जीना सिखाया है

 

अकेले आता-जाता अज्ञात 

 

किसने बनाया जात – पात ?

 

साहस के पंखों पे भर उड़ान 

 

ढूंढता रहता अपनी पहचान 

 

जीवन नहीं  किसी का बोझ 

 

कर  रहे सब अस्तित्व खोज

 

लगा है सदा से आना- जाना 

 

नहीं चलता  है कोई  बहाना

 

चल रहा है सदियों से फेरा

 

बदलता रहा है सबका डेरा 

 

नभ से वर्षा होती बूंद- बूंद 

 

कहां से आता कहां को जाता ?

 

क्या वह  कोई वचन निभाता ?

 

इस  बात  को  जो लेता  ढूंढ 

 

उसे क्या सर्द क्या धूप- छांव ?

 

बैठ  चला मस्त वह आई नाव …….

 

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