Faisala | फ़ैसला

two roads between trees

जीवन भी कई हाथों से होकर आती है, मां-बाप इस संसार में हमें लाते हैं । हम रिश्तो में बंधे हुए जिम्मेदारियों को निभाते हैं। पर इस जीवन जीने की कला में हम अपनी अपनी भूमिका को निभाते रहते हैं । अपने सिद्धांतों के अनुरूप इस भूमिका निर्वाह में बहुत बार भूमिका द्वन्द्व का भी समय आता है। यह परिस्थिति हमें वास्तव में हम को बनाती है क्योंकि सामान्य परिस्थितियों में तो सही निर्णय कोई भी कर सकता  है । पर द्वंद्व की स्थिति में सत्य के साथ होना, निर्णय लेना एक मुश्किल भरा दौर होता है, जिसमें हम  एक अनोखा बनते हैं, कुछ नया बनते हैं।  ऐसा क्षण सबके  जीवन में कभी न कभी जरुर आता है। 

 

क्रोध में लिया हुआ निर्णय अक्सर गलत होता है। जीवन के महाभारत में  जीत तो  प्रेम है, सत्य है, करुणा है, जो सभी को  मजबूत बनाता है । असत्य बार- बार पटखनी बार-देता  है पर सत्य का अहसास सबको मजबूत बनाता है।   यह उर्जा दिनों दिन बढ़ती जाती है और स्वयं का सत्य के साथ सिद्ध कर पाना आसान हो पाता है । यही युद्ध है एवं इसका लक्ष्य भी । बाकी सत्यमेव जयते । 

 

लोगों के जहां से जाने के बाद सब धीरे-धीरे अपने दायित्व एवं कार्य में जुड़ जाते हैं क्योंकि कर्म ही जीवन का सार है।  चाह कर भी हम उसको यहां इस जहां में नहीं पा सकते हैं । यह सब के साथ होता है जो शाश्वत सत्य है।  बीज की भांति जीवन अंकुरित होकर कर्म से एक वृक्ष बन जाता है  जो समय अनुसार पल्लवित पुष्पित एवं फलित होकर परिपक्व होता है और फिर स्वयं बीज का रूप लेकर गतिशील हो जाता है । जब वह जीवन वृक्ष और असामायिक रुप से आंधियों में टूट कर गिर जाता है तो सबको असहाय पीड़ा होती है । उस पंछी को सबसे ज्यादा होती है जिसमें वह अपना घोंसला बनाए रहता है।  घोंसला बनाते समय वह कई सपने संजोए रहता है जो बिखर जाता है । ऐसा ही युद्ध जीवन में चलता रहता है परंतु कर्म की नदी हमेशा प्रवाहमान है।  हम सब भी उसके अंग हैं जिसकी गति को नहीं जान सकते कि वह नियति बन कर कहां ले जाएगी। 

 पर अपने कर्म के प्रयत्न से जीवन को जानते, अनुभव करते जाते हैं।

 

लोग आ रहे हैं जा रहे हैं पर जीवन अनंत है। विचार अमर है। कर्म की गाथाएं अमर है ।जब संसार व समाज के लोग आपको बाह्य आघात करते हैं, चोट पहुंचाते हैं तो आप उस दर्द, उस आघात को अपने अंतस की गहराइयों में ले जाकर देखें। हमें वहां एक अवसर दिखाई देता है । उस आघात से हमारे अंतस में एक अंतरनाद होती है जो ऊर्जा का एक स्रोत है। उस उर्जा को आधार बनाकर अवसर से सृजन का जन्म होता है पर इस स्थिति में विरले ही ऐसा कर पाते हैं । अधिकांश लोगों का व्यवहार उस आघात को जो बाह्य  है, जगत में ही ढूंढते रहते हैं जो उन्हें स्वयं से परिचित नहीं कराती है । आघात का प्रतिकार बार-बार दोलन करते हुए आघात ही करता है  जिससे पीड़ा व्यथा बन जाती है जबकि उसका स्वीकार अंतस में अंतरनाद को जन्म देकर  रचनात्मकता को अग्रसर करती है । 

 

वास्तव में जीवन निर्णय है और निर्णय ही   जीवन है । व्यक्ति को गौर से देखने पर उसके किए गए कार्य व्यवहार, कर्म की गाथा का अहम अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि वह निर्णय 

कितने ? 

कैसे ? 

कहां ?

क्यों ?

किस तरह से ?

कैसा ?

लिया है।फिर यही एक दर्पण बन जाता है ।

पूरा जीवन निर्णय की एक श्रृंखला है । जिसमें निर्णय सही भी होते हैं और गलत भी हो सकते हैं , सकारात्मक भी होते हैं नकारात्मक भी होते हैं । वास्तव में निर्णय किसी बात पर ना लेना भी एक निर्णय ही है जो जेबी वीटो की तरह है।  निर्णय विकल्पों में से एक का चुनाव है। इस तरह से हम कह सकते हैं कि जीवन चुनाव ही है जो अनवरत है ।

 

वर्तमान में जो कड़वा अनुभव हो आवश्यक नहीं कि वह भूत में भी वही अनुभव हो । परिस्थितियों के साथ उनकी यादों में बदलाव आती है । आज जो पीड़ा दाई है कल सहनशक्ति में परिवर्तित होकर हमें एक शक्ति  स्रोत का एहसास कराती है। आज जो सुख में है हो सकता है कल दुख का कारण बन जाए । कोई स्थाई नहीं है सब परिवर्तन के बहाव में है । फिर हम क्यों या भूल जाते हैं अक्सर दुख की घड़ियों में दुख  भी एक भाव है, पड़ाव है, स्थाई नहीं है । यही विस्मरण हमें वास्तविकता से परिचित नहीं होने देती । 

 

हम काले बादलों के साए में घिरे उस उजाले सूरज को भूला बैठते हैं और भयभीत हो कुछ गलत कर बैठते हैं । लोग दुखी इसलिए होते हैं क्योंकि वह सुख की चाह में रहते हैं जो दुख को घृणा करते हैं प्रेम नहीं । जबकि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं । सिक्का अगर खुद का समाज में दुनिया में चलाना है तो आपको दोनों पहलुओं से उतना ही समांतर प्रेम करना होगा । किसी को कमतर आन्कना खुद से खुद में एक असंतुलन पैदा करता है जो हमें कमजोर बनाता है । हमें पक्षपाती बनाता है । 

 

अधिकांश लोग दुख से भय खाते हैं इसलिए वह अवसर होते हुए भी उनके लिये अभिशाप का कारण बन जाता है या बना बैठते हैं । हमें दुख को स्वीकार करना होगा । उसको भी अहमियत देना होगा । आखिर उसके अनुभव, एहसासों में हमें गोता लगाना होगा । तब जाकर हमें कहीं वह मोती मिलेगा जिसकी तलाश में सब कोई होते हैं। हीरा की खोज करने में हमें उजाला साथ नहीं दे सकता है क्योंकि उजाले में  हीरे की चमक को देख पाना मुश्किल होता है वही अंधेरा हमें हीरा ढूंढने में बहुत सहायक है ।  काले अंधेरों में हीरा आसानी से चमकता दिखाई पड़ जाता है । चाहे वह जहां कहीं भी हो अंधेरा हमें प्रकाश को देखने में सहायता करता है । चाहे वह प्रकाश कितना भी छोटा क्यों ना हो ?   कोइ अंधेरों में जब अकेला अपने अंतस की गहराई में उतरकर स्वयं को देखता है तभी यादों का हीरा चमकता हुआ दिखता है उसे जो उसके अंतस को उजालों से भर देता है। वह फिर नए मार्ग को प्रशस्त करता है । 

 

जिंदगी भी एक शतरंज की बिसात की तरह है। जब सेना पूरी होती है तो किसी की परवाह नहीं होती है । धीरे-धीरे लड़ाई होती जाती है मोहरे शहीद होते जाते हैं तब बहुत सारे बाजी ड्रा खेली जाती है । सब कुछ जब रहता है तभी हम ड्रा खेलकर अपना सब कुछ बचा सकते हैं जो सबसे बेहतर होता है । परंतु हमारा अभिमान यह करने से रोकता है हमें। जिंदगी के चक्कर में अच्छे से अच्छा आदमी घूमके गिर जाता है । अपने को भुला बैठता है । अपनी गलतियों से सीख लेने वाला वही गलती नहीं करता । पर गलतियों को छुपाने अगर कोई दूसरा गलती करता है तो फिर गलतियों का पुलिंदा बन जाता है वह इंसान और यही भंवर उसे डुबो देती है।  यहां कोई सदा नहीं है । इस बात को लोग भुला के लड़ने पर उतर जाते हैं । सबके खुशी का रास्ता चुनने वाले बहुत ही कम होते हैं।  

 

सभी के  अपने अपने दुख हैं  अपने- अपने राय।  कोई सुबह  कोई शाम में खूश होता है। यह अनुभव हमें मजबूत भी बनाती है और कमजोर भी क्योंकि जीवन जीने में ये शामिल है ।  तकलीफ में भी मुस्कुराने से मुस्कुराहटें खीन्ची चली आती है । खुशी में तो हर कोई मुस्कुराता है साधारण भी परंतु दुख के पलों में असामान्य ही मुस्कुरा सकता है तेरी मुस्कुराहट उसे विजयश्री दे जाता है योद्धा तो युद्ध की भूमि में मुस्कुराते हुए अपने प्राणों का को परखता है और दुख को निकालता है । वह व्यक्ति परीक्षा से कभी भयभीत नहीं होता जो स्वयं का आकलन स्वयं प्रश्न उत्तर के माध्यम से रोज करता है।  परीक्षा उसके लिए कर्मों का उत्सव बन जाता है दर्पण बन जाता है ,जिसमें वह खुद को सदैव नया पाता है।  कोयले की खान में ही हीरा बनता है ।सीप के अंतस में दर्द ही मोती बनता है । कीचड़ के दलदल में ही कमल खिलता है । यह समझना जानना ही वास्तविकता है, जीवन है।    

 

                   अपनी जिंदगी का फैसला हमें ही करना है और कोई नहीं कर सकता । किसी और के आधार पर लिए हुए फैसले में मुसीबत यह है कि जब हम दुविधा में या मुश्किल भरी दौर में होते हैं या गुजरते हैं तब विचारों में विरोधाभास का आभास होता है । यह आभास हमें संगठित नहीं होने देती है और हमारे अंदर अंतर्द्वंद का बीज बन जाती है।  इसके विकास में तकलीफ का आशियाना होता है फलस्वरुप खुद को संभाल पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।  संगठित हम तभी होते हैं जब हमारे मनसा, वाचा, कर्मणा में एकरूपता होती है । किसी कार्य की जिम्मेदारी तब साथ ले पाते हैं अन्यथा दुविधा के पाटो में पीसने लगते हैं । अपने से लिए फैसले के लिए हम दूसरों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं, और जब दूसरों को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं तो जिम्मेदारी की पूर्णता चाहे वह भला हो या बुरा स्वीकार्य होता है।  जहां स्वीकार्यता होती है वहां अंतर्द्वंद नहीं होता है, संगठन होता है जो इरादों को और मजबूत बनाती है । 

 

ध्यान जीवन का बड़ा ही महत्वपूर्ण सूत्र है जब हम मुश्किल भरे हालातों में होते हैं तो हमें ध्यान से उन हालातों को देखकर समझते हुए एकाग्रता से अपने अंतस में जाकर उसका हल ढूंढने से हमारी सफलता का द्वार खुल जाता है। अंतस में हम खुद से परिचित हो उस खुदा को भी प्राप्त करने लगते हैं जो खामोश हमारा इन्तजार कर रहे होते है। उनसे बात करने वाले बहुत ही कम मिलते हैं।  उनसे बातें करना ही ध्यान है। उसके सानिध्य में जाना ही ध्यान है । जहां ज्ञान, विज्ञान से जहान का समाधान  मिलने लगता है । इसलिए भारतीय परंपरा में ध्यान को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । ध्यान है तो सब कुछ है नहीं तो कुछ भी नही । 

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