Remort control / रिमोट कंट्रोल

शाम का समय था यही कोई 6:00 बज रहे होंगे, घड़ी के कांटे अपनी रफ्तार में चल रहे हैं । सदियों से रफ्तार वही है पर लगता है समय अब कम होते जा रहे हैं, खुद को ढूंढने के लिए वक्त निकलना बड़ा मुश्किल है, इस बात की सत्यता का प्रतिशत दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। राघव रायगढ़ में एक सरकारी ऑफिस में काम करता है। आज वह थका हुआ कुछ, खुद को तलाशने आ बैठा है । दो बड़ी-बड़ी माल आमने-सामने है। चारों तरफ चहल-पहल, भीड़ भाड़ है थोड़ी बहुत। वही बच्चों का एक उछलने कूदने वाला स्टैंड लगा है जिसमें बच्चे उछल रहे हैं, कुछ छोटी-छोटी गाड़ियां भी है जिसमें बच्चे सवारी कर रहे हैं । राघव वहां बैठा था सीढ़ियों में । अपने ओहदे , रुतबे को भूलाकर आम आदमी की तरह कि मानव का फोन आता है , राघव के फोन रिसीव करते ही सुनाई देता है कहां हो मेरे यार, मैं भी आ रहा हूं यह मानव का कहना था । राघव ने कहा माल के सामने बैठा हूं आज आकर कहा ओके कह मानव ने कॉल काट दिया । तकरीबन पंद्रह मिनट बाद वह आ गया। राघव उसको देख कहीं और चले क्या कहा पर मानव ने कहा यहीं ठीक है यार कह दोनों सीढ़ियों पर बैठ गए और बातें करने लगे ।

मानव ने कहा यह बच्चे कितने खुश हैं देख इनको न कल की फिक्र है ना आज की चिंता, राघव ने सही कहा यार कह बड़े गौर से देखने लगा बच्चों को । क्या बचपन इसी मस्ती का दौर है ? मैं अपनी बात बोलूं भाई मानव, मानव ने कहा हां बोलना भाई , यह सुन राघव ने कहा
हमें बचपन में लगता है कि हम बड़े कब होंगे ?
और
आज लगता है कि हम छोटे कब होंगे ?

इतने बड़े हो गए कि खुद को खोजना मुश्किल हो जाता है इन भीड़ में । हां यार ऐसा ही है मानव ने कहते हुए बोला बहुत कम लोग होते हैं जो वर्तमान में खुश होते हैं । सभी सपनों के धागे बुनते हैं जो एक जाल सा बन जाता है जिसको खोल पाना समय के साथ मुश्किल हो जाता है । सभी ख्वाहिशें को अपने अपने-अपने रास्ते भागते हैं फिर बहुत कुछ बदल जाता है जीवन का नजारा अर्थ हां भाई राघव ने कहा ।

दोनों शांत क्लांत एकांत में दूर बच्चों को उछल कूद करते देख रहे थे तभी मानव के विकासखंड से एक प्रधान पाठक आकर कहने लगे आज बड़े आराम से बैठे हैं दोनों सर, क्या बात है ?
तभी मानव ने कहा बस ऐसे ही बैठकर बातों बातों में खुद को हम लोग खोज रहे हैं मुस्कुराते हुए प्रधान पाठक ही मुस्कुराते हुए सही है सर जी कह आगे बढ़ गया । मानव व राघव दोनों समान एक ही विभाग के समान पद पर अलग-अलग विकासखंड में कार्यरत है। वे निकट के ब्लॉक में कार्य करने के कारण अक्सर उनकी मुलाकातें होती रहती हैं । अमूमन रोज कहे तो गलत नहीं होगा।

मानव ने कहा ओहदा और रुतबा एक ऐसा बैरियर बन जाता है कभी-कभी बहुत आदमी के लिए कि वह उसमें कैद हो जाता है। यह बात व्यक्ति को पता भी नहीं चलता यह सबसे बड़ा मनोविज्ञान भी है जो समझते हैं कभी- कभी समझने वाले भी ना समझी कि भंवर में गिर जाते हैं, हां राघव ने कहते पूरी बात सुनी फिर बोला, आज मैं एक विद्यालय देखने गया था गांव का जिसमें एक नया भवन बना है परंतु वहीं दो भवन पहले से भी हैं पर एक थोड़ी दूर में है जिसको गांव वाले दूरी के कारण सड़क किनारे होने से दुर्घटना के वजह से परित्याग कर दिए हैं। यह सबसे पुराना भवन है परंतु ठीक ठाक है ज्यादा जर्जर नही है । दूसरी जगह बाद में बना भवन बताया है जिसको देख मैं दंग रह गया मन से यही भाव निकले मेरे यार,

इतिहास सीना ताने खड़ा है

ये वर्तमान धराशाई पड़ा है

यह कैसा कृति है ?

इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?

उसने ऐसा क्यों किया होगा ?

क्या मानसिकता रही होगी उसकी ?

विकास के नाम पर संसाधनों की बहुलता है केवल गुणवत्ता नहीं है ।

एक विद्यालय की ऐसी स्थिति है जो मानवता का मंदिर है इसको सोच मन में चोट लगती है यार कह उठा राघव । मानव हां भाई बड़ी विडंबना है, अंग्रेजों के बने चीज आज भी सुरक्षित हैं आजादी के बाद बनी चीजे जर्जर होकर खंडहर बन गए हैं। कौन अपना है ? कौन पराया ? समझ से परे हैं ।
इसी तरह दोनों ने कई मुद्दों पर तर्कों के तीर से निशाना साधते रहे और समझते रहे, खोजते रहे, खुद से लड़ते रहे, प्रश्न के बाण मारते रहे

दोनों बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देख अपने विचार युद्धों को विराम देते हुए रुके एवं फिर शांत बैठे रहे ।
वह इस तरह मशगुल थे जैसे केवल वे हैं और बहुत सारे मस्ती करने वाले बच्चे हैं । कुछ देर बाद राघव यार मनीष यह बच्चा कितना खुश है ना जो उस छोटी सी कर में बैठा है और स्टेरिंग घूमा रहा है । उस बच्चे को पूरा लग रहा है की गाड़ी में ही चला रहा हूं । वह कितना खुश है । परंतु वह यह नहीं जान पा रहा है कि इसको कोई पीछे से रिमोट से कोई चला रही है या चल रहा है । हमारा जीवन भी ऐसा ही मुझे लगता है मेरे दोस्त । मानव यह देख सुन सन्न रह गया कुछ देर फिर बोला हां यार मुझे भी ऐसा ही लगता है । जब उस बच्चे को यह मालूम हो जाएगा तो सोच क्या होगा ? यह तो बड़ा प्रश्न है मेरे भाई मेरे दोस्त ।

राघव ने कहा हो सकता है वह निराश हो जाए उसके लिए

या फिर रिमोट कंट्रोल व खुद मांगने लगे

या फिर सब समझ कर भी उसका आनंद ले

या वह इस खेल से हट जाए, हटकर कुछ दूसरा खोजें

क्या हम भी ऐसे ही कर रहे हैं ?

क्या हम भी उस बच्चे की तरह हैं

हमको भी क्या यथार्थ का भान नही है ?

क्या हमारा रिमोट कंट्रोल किसी और के हाथ में है ?

मानव ने कहा दोस्त वह बच्चा तभी खुश होगा जब वह उसको सच मान ले वरना उसके अंदर अंतर्द्वंद्व होने लगेगा तभी राघव ने कहा सही कहा पर यह भी तो हो सकता है कि वह उसको आत्मसात कर उसका आनंद लेता रहे क्योंकि वह निराशा के भंवर में भी फंस सकता है कि मैं जिसे सच समझ रहा था वह झूठा निकला सच तो कुछ और ही था तभी मानव ने कहा बहुत सारे लोगों के साथ यही माजरा है जो आज तक इस सच से अनजान हैं । इस तरह दोनों शांत होकर सच को फिर दैनिक कर्मों के साथ खोजने जानने की चाह रखते हुए अपने अपने घर की ओर चल पड़े …….।

Comment

There is no comment on this post. Be the first one.

Leave a comment