Main majdoor hun | मैं मजदूर हूं

मैं मजदूर हूं

रोटी, कपड़ा ,मकान ,

इतने नहीं आसान

अंधेरी रातों की जुगनू है मेरी मस्ती

चकाचौंध की दुनिया , भोग विलासिता से दूर हूं

मैं…

अट्टालिकाओं में लगा ईंटा

अपने खून पसीने से सींचा

किसी का कभी नहीं कुछ छीना

मेरा खजाना है मेरा पसीना

जिंदगी में झेलता रहा कई लू हूं

मैं …

हर रोज मैं सिहर उठता हूं

यह सोच के जेहन से

कल मेरा मालिक कैसा होगा ?

बाजार में मेरी कीमत क्या होगी ?

फिर भी ढूंढता कोहिनूर हूं

मैं …

उन्होंने बनवाया, मैंने बनाया

आज तक यह समझ नहीं पाया

अंतर क्या है ? कहां है ? क्यों है ?

दरअसल इसे किसने बनाया ?

ख्याल आते हैं यह अक्सर , क्या मैं किसी का कुसूर हूं ?

मैं …

मैंने दिया, उन्होंने लिया

उन्होंने दिया ,मैंने लिया

फिर असमानता क्यों बढ़ रही है ?

किसने ? कहा ? क्यों ? कैसे ? कब?  यह सब कुछ किया

सोचने पर आज मैं भी मजबूर हूं

मैं …

आज मेरे अपने मुझसे लड़ते हैं

पूछते हैं हम क्या गढ़ते हैं ?

हम पीछे क्यों हो रहे हैं ?

आगे क्यों नहीं बढ़ते हैं ?

उनके प्रश्नों के सामने मैं निरुत्तर हूं

मैं …

यह प्रश्न है कितने प्रासंगिक?

गर इनका मैने हल   ढूंढा

बोलने लगेंगे अट्टालिका ओं के ईंटें

समझ लो फिर क्या होगा ?

ए दुनिया वालों , अब मैं एक नया दस्तूर हूं

मैं…

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