Chakravihyu

 

 

क्यों सोचते हो जीवन सफल नहीं ?

 

आत्म हत्या केवल इसका हल नहीं 

 

तू  जता न  अपने  जीवन  पे  खेद

 

बना लक्ष्य जग समक्ष  उसको भेद  ।

 

 

पग-पग मिलेगा जग में तुझको छल

 

हरदम रख  तू अपना विश्वास अटल

 

लक्ष्य अक्ष से ना ओझल  होने पाये

 

चाहे अंधकार कितना भी  हो  जाए ।

 

 

जीवन में कितना भी हो उथल- पुथल

 

पर संभावनाएं मिट जाती नहीं सकल

 

कुदरत भी  परखता  रहता है सबको

 

वरदान  देगा  वह  आखिर  किसको  ?

 

हर  चक्रव्यूह तोड़ो रण मत छोड़ो

 

जीवन भी है एक रणभूमि समान 

 

लड़ते रहो, बढ़ते रहो, गढ़ते  रहो 

 

अंतिम शयन घर सबका शमशान ।

 

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