सोंच रहा हूं मैं
कुछ खोज रहा हूं मैं
सब देख रहा हूं मैं
समझ रहा हूं मैं
सोंच रहा…….
सूरज, चाँद, सितारों को
इनके किये इशारों को
चिड़ियों के चहगानों को
कलियों के मुस्कानों को
सोंच रहा…….
लगा हूँ अर्थपूर्ण बनाने में
हमेशा खुदको आजमाने में
अथाह की थाह पाने में
नये – नये राह बनाने में
सोंच रहा…….
पर्वत, पठार, नदियां – नहर
गांव – गलियां, शहर – शहर
नव- विहान, खेत – खलिहान
कैसे बनाये जाते हैं पहचान ?
सोंच रहा…….
नदियों के बहने को
धरती के सहने को
हवाओं के कहने को
समंदर के लहरों को
सोंच रहा…………
घर आये मेहमानों को
लोगों के अरमानों को
चिड़ियों के चुगते दानों को
जुगनू के जगमगाने को
सोंच रहा ……….



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