Chausar

 

घनेरी अंधेरी रात स्याह

 

ढूंढ  रहा  हर कोई राह 

 

है कोई  जो कराह रहा 

 

सुने कौन किसकी आह 

 

टिमटिमाते यह नन्हे तारे 

 

पूछ रहे प्रश्न इनके बारे 

 

आशाओं के दीप जलाए 

 

कई सपनों को हैं सवारे 

 

दुखों के मझधार में देख 

 

खे  लाया कश्ती किनारे 

 

खनक के लिए है यह अवसर 

 

आदमी के दिन-रात का चौसर 

 

एक धवल दूजा काला सदियों से 

 

है दोनों सदा आमने – सामने 

 

कोई तो है खेल खेलने वाला 

 

सदियों का फेरा शाम सवेरा 

 

क्या है तेरा ?  क्या है मेरा ?

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