Aohada | औहदा

man in gray crew neck t-shirt sitting on brown dried leaves during daytime

मां शब्द अपने आप में अद्भुत है इस शब्द में पूरा संसार सीमट जाता है। बच्चा जन्म के बाद पहला शब्द मां का ही उच्चरित करता है क्यों ? कभी आपने शांत होकर सोचा है ? सोचने के बाद लगता है क्यों  ना हो मां का पहला उच्चारण ?  वह 09 महीने तक उसे अपने पेट में धारित करती है। उसके साथ अपने सपने बुनती है। उसके साथ अरमानों में जीती है । बच्चा और वह एक ही ताना-बाना में होते हैं उस वक़्त अंदर और बाहर कि दुनियां ही दोनों के लिए अद्भुत अनुभव देने वाली होती है ।  मां जो सोचती है वैसा वह भी सोचता है, मां खाती है तो उसकी भूख मिटती है, माँ जो सुनती देखती है वह सब वह सुनता देखता अनुभव करता है।  अद्भुत रचना है इस रचनाकार की जो सभी प्राणियों में यह संचालित है ।  फिर मैं कैसे अपने मां से अलग होता मां अपने बच्चे से अकेले में बातें करती है और बच्चा उसको सुनता समझता भी है आज मनोविज्ञान ने भी इस बात को माना है जो हमारे पूर्वजों ने अभिमन्यु की चक्रव्यूह युद्ध की कहानी को माना है । माता के गर्भ से प्राप्त किया अपने पिता अर्जुन से सुनकर पर पूर्णता उसको वे ना सुन सके क्योंकि माता सो गई एवं पिता ने कहानी अधूरी रखी। मां इस संसार में प्रथम गुरु होती है जो हमें शिक्षा देती है। 

मेरी मां ने जब मैं उसके गर्भ में था तो बहुत कष्ट उठाए हैं । ऐसी वह कहती उस वर्ष अकाल पड़ा और मेरी मां को मिट्टी धोना पड़ा अपने बेटे लिए क्योंकि उसके पेट में मैं आ चुका था उसके अरमान बनकर ।  वह चाचा, पिताजी व बुआ के साथ मिट्टी तालाब की खुदाई से ढोती और कठिन परिश्रम का पाठ मुझे पढ़ाती । मां जब भी उस तालाब के मेढ से होकर गुजरती है तो  (जो वर्तमान में  रोड बन गया है) बताना नहीं भूलती कि इस मेढ में मैंने भी मिट्टी डाली है और गहरा किया है उस तालाब को जिसमें आज पानी भरा है और इसके बीच में कमल और कुमुदिनीयों के फूल खिले हुए मुश्का रहे हैं । पसीने की बूंद से इस मिट्टी में है बहुत से लोगों के अरमान सजे हैं।   तभी मां की हंसी के लिए मैं कहता मैं भी डाला हूं, इस पर मां हंस पड़ती और हँसते हुए उसके आँखों से आंसू भी आ जाते तथा स्वर गहरा हो जाता है ।  मां जीवन का आधार है वह एक संसार है मेरे लिये उसके बिना कहीं भी मै टीक नहीं सकता हूं । उसकी बातें सुनकर मेरे अंदर तक आवेग उठ जाता है, बिजली सी चमक जाती है जेहन में जब भी उस तालाब के पास से मैं भी गुजरता हूं तो उसमें मेरे मां के पसीने की चमक दिखाई देती है।  ऐसी न जाने कितनी और माताओं के पसीने इसमें होंगे ।

 पिताजी पढ़े-लिखे बेरोजगार थे, उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी पर घर कि जिम्मेदारियों के आगे वे डट कर खड़े रहे । समय के साथ चलना ही जीवन है, वर्तमान ही सब कुछ है।  कल को किसने देखा । पर वर्तमान को जिसने सहर्ष स्वीकार कर आज का आज मे जिया है उसका कल सदैव अच्छा बना है । युवा को भविष्य की चाह में वर्तमान उसे कुछ नहीं लगता है । वह उगता सूरज की तरह हमेशा आगे की ओर देखता है वही वृद्ध  डूबते सूरज की तरह वह बीते कल की बात करता है । उसके आगे अब अंधेरे हैं  यामिनी का वर्चस्व अब शुरू हो रहा है। 

मुझे याद है स्कूल जाने का मेरा जिद करना एवं पिताजी के साथ बातें करते हुए स्कूल जाना । अपने गांव उस समय में बहुत शौकत था । इसके दो वजह से 1952 का प्राइमरी स्कूल जो एक बड़ा सा हाल की तरह था, उसके चारों दिशा में दरवाजा था अंदर बाहर जाने का।  बहुत बड़े-बड़े आम के पेड़ थे । गांव का रास्ता बालू से भरा रहता नदी की तरह । अपने गांव में सभी तरह की मिट्टी पाई जाती है बलुई मिट्टी, काली मिट्टी, लाल पीली मिट्टी, दोमट मिट्टी , जलोढ़ मिट्टी , लेटराइट मिट्टी व  लाल मिट्टी । प्रकृति मेरे गांव में पूरी तरह से मेहरबान है पूर्व में पठार सदृष्य मिट्टी का ऊंचा टीला सा मैदान , उसके नीचे ढाल एवं खाईनुमा स्थलाकृति  विभिन्न प्रकार की।  उत्तर में केलो नदी एवं पहाड़ वहीं दक्षिण में नाला एवं पश्चिम में गांव तथा एक विशाल तालाब । खेल के मैदान तो यहां समृद्ध है।  बचपन सपना  के रूप में बीता,  इन स्थल आकृतियों में हमने खूब लुकाछिपी का खेल खेला उस समय जीवन बहुत ही सरल था। मैं 1986 में स्कूल में भर्ती हुआ, प्रकृति को बहुत करीब से जाना आम का बगीचा था पूरा गांव।  वही काजू का एक विशाल बाड़ी, इमली, बेर, सीताफल व जामुन के रसीले फल  खा – खा के बढ़े हुए।  गन्ने के मीठे रस धमनीयो मे घुलती रहती हमेशा । 

प्राथमिक शिक्षा मेरी गांव में  ही हुई।  मेरे गांव का नाम झलमला है जैसा नाम वैसा ही बिल्कुल पानी हमारे गांव की पहचान रही है। हर घर में पहले क्या होता था एक आदमी के पास दो-तीन कुंवा होते थे।  अपने गांव में सब्जी की खेती बहुत ज्यादा होती थी उसकी सिंचाई का एकमात्र साधन पहले कुंवा होता था । आज नलकूप हो गया है।  याद है मुझे पांचवीं बोर्ड की परीक्षा उस समय 1990 में पांचवी में बोर्ड होता था । बाहर से 1 परीक्षक आए थे वह बस शिक्षा की स्थिति को जानते थे, काफी उदार थे । उस समय हम को नकल बताते थे।  ब्लैक बोर्ड में गणित बनाकर परीक्षा के दिन बताते थे बाकी दिन का हमें पता नहीं । शिक्षक कुन्जी से बोलते जा रहे हैं हम लिखते जा रहे हैं, हमें क्या मालूम कि हमारे साथ क्या हो रहा है ? जवानी में वह नकल का जहर खाने को दौड़ता । हमारे शिकार की करतूत हमें याद आने लगे जब परीक्षा की आग में बैठे । पिताजी शिक्षित में से थे वे हिंदी में  कोविद  भी पढ़े थे । माता अशिक्षित थी पर जीवन की शिक्षा में पिताजी से कहीं आगे थी । पिताजी कहानी सुनाने एवं प्रेरणा देते अकबर बीरबल की कहानियां।  जैसे जैसे हम बड़े होते गए इस पर उन्होंने कहानी का स्तर भी बढ़ाया । अजी मैं तो आपको एक महत्वपूर्ण बात बताना भूल जा रहा था, मेरी नानी ने हमें जो शिक्षा दी वह बिल्कुल व्यवहारिक एवं अनौपचारिक थी जो व्यक्तित्व विकास के लिए अति महत्वपूर्ण होती है।  मैं और नानी एक साथ कभी- कभी सोते और वह मुझे रातों को अंचलिक लोकरंजन कि आत्मक कहानी सुनाती । दादी एवं नानी की कहानी में जो बात है वह औरों  में कहां । उनके चेहरों पर जिंदगी की जंग जीतने की दास्तानों की रेखाएं अब झुर्रियां बन गई है। उनके अनुभवों को वही बता सकते हैं, सिखा सकते हैं और कोई और नहीं । 

वास्तव में मेरे जीवन का वास्तविक शिक्षक एक अलग ही व्यक्ति था । जिसे पूरा गांव जानता था, वह काफी मजाकिया एवं हंसोड था । बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी उसके पास आकर हंसती थी, वह जिंदगी की अलग ही फलसफे के राह पर था । उसकी जिंदगी अद्भुत थी, उसके अनुभव एवं ज्ञान का कोई सानी न था आसपास में । मैं आज भी उनको  अपनी यादों में पकड़ता रहता हूं।  इतना याद है मुझे कि वह रोज एक कहानी मुझे सुनाते और फिर प्रश्न पूछते, मैं उत्तर देता, जब ना दे पाता तो वह स्वयं बताते।  वह वास्तव में मेरे लिए बेताल से कम न थे और मैं उनके लिए विक्रम से कम ना था । बेताल के बिना विक्रम, विक्रम के बिना बेताल का क्या महत्व है एवं उपयोगिता है । उन्होने मुझे एक बुद्धिमान विचारवान एवं प्रयोगी व्यक्ति बनाया दिया। उस समय गांव में आज के जैसे मनोरंजन के साधन नहि हुआ करते थे । रातों को गांव में नाटकों का मंचन होता था । लक्ष्मी पुराण नाटक का मंचन किया जाता तो कोई और वह भी विदुषक के रूप में लोगों को खूब हंसाया करता था । मुझे भी उसने विदूषक के पात्र में गढ़ डाला, वह जो कहता मैं वही कहता भी था। उसमें पूरी श्रद्धा मेरी होती, मेरा बचपन का अधिकांश समय उनके ही घर में बिता। उनके साथमें बड़ा हो गया और फिर अनौपचारिक से औपचारिक शिक्षा की ओर झुकते हुए उससे दूर समय के चक्र अनुसार होने लगा । इस तरह वह मुझसे हमेशा के लिए एक दिन दूर हो गया । उसकी स्थूल शरीर को तो मैं देख तो नहीं सकता  एवं उसके चेहरे को रची रचना को भी समय के रेत में गड़ गई जिसे मैं चाह कर भी ढूंढ नहीं सकता, पर उसकी कहानियों के ज्ञान , प्रेम तथा विदूषक शैली की खुशबू को हमेशा महसूस करता हूं । इस तरह वह मेरे जेहन में मेरे मूल्य, विचार, व्यवहार में शामिल हैं । उनका व्यक्तित्व मेरे व्यक्तित्व में निश्चित रूप से मिला हुआ है । इंसान जो कुछ भी होता है वह अकेला नहीं होता है , उसके अंदर लोगों के विचारों के जोड़ होते हैं । कोई अनजान व्यक्ति के मरने पर आपको तकलीफ नहीं होती क्योंकि आप उससे रूबरू नहीं हुए रहते हैं वही अपना परिचित की हो तो हमें असहनीय पीड़ा होती है।  हम शोक से आकुल  व्याकुल हो उठते हैं क्यों ? क्योंकि उसके विचार, बातें, मूल्य व  व्यवहार हमें प्रभावित करते हैं । हमारे अंदर संजोए हुए खजाने की लूट जाने पर हमें दुख होता है । वह निधि अब अंतरतम में होती जाती है । विचारों का मेलजोल ही जीवन है । विचारों से ही हम जीवित हैं । जिसने विचारों की गठरी को खोला एवं लेनदेन जितनी की है वे उतने ही क्षमता के साथ लोग कमाए रहते हैं । जीवन विचारो कि गठरी है । 

 मां ने हमें अपनी गरीबी के पल में  जीवन के लिए संघर्ष कैसे किया ? उसको सुनाते हुए हमें भावनात्मक शिक्षा देती जो किसी लक्ष्य के प्रति समर्पण के लिए अति आवश्यक है । वह बताती हमें एक-एक दाने के लिए मोहताज कैसे हुए ?  वक्त पर उसने केवल चावल के मांड को ही पीकर जिंदगी गुजारी है । वह बताती है कि मैं एक कुपोषित बच्चा था जब पैदा हुआ । मेरी मालिश के समय पैरों के घुटने के नीचे दोनों पैरों के बीच मुझे सुलाने के लिए बीच में कपड़े डालने पड़ते थे अन्यथा में उसके नीचे चला जाता । मैं कैसे कुपोषित ना होता जो मेरी मां इतनी भूखी रहती , काम करते उसके सारी ऊर्जा खत्म हो जाती।  वह सब सुन के दिल की धड़कन बढ़ जाती है, रक्त का संचार बढ़ जाता है , दोनों भुजाएं फड़कने एवं ऊपर आकाश की ओर उठ जाते हैं ।  एक हुंकार सी आवाज अंदर से पैदा होती है उस ईश्वर के लिए जो सर्वत्र है । सब जानता है, सारे कर्मों का हिसाब जिसके पास है जो विधि का ज्ञाता है, स्वयं विधाता है । माँ ने मुझे निश्चित हि अपने विचार से हृष्ट-पुष्ट अवश्य बनाया क्योंकि वह जानती है कि जगत को विचार से भी जीता जा सकता है । 

पिताजी  वैचारिक रूप से बल प्रदान करते । एक शाम को उन्होंने एक स्टोरी बताये  एक व्यक्ति की जो बड़ा आदमी बना, गरीबी से ऊपर उठकर पर वह गरीबी से घृणा करने लगा, गरीबों से घृणा करने लगा । बड़ा ही मार्मिक था वह कहानी । वह  जिसमें निर्माता को अपमान मिलता है, उसके दिल को बेरहमी से कैसे कुचला जाता है , चलो आपको भी बताता हूं । पिताजी ने कहा  एक मोची था। वह जूते बनाता था एवं पालिश करके  उसे बेचकर अपनी जीवन चलाता था।  पर वह एक समझदार व्यक्ति था । उसने अपने बेटे को अच्छी तरह से पढ़ाया – लिखाया । एक वक्त ऐसा आया कि उसका बेटा आगे पढ़ाई करने हेतु पैसों की कमी की बात अपने पिताजी को बताया । उसके पिताजी ने कहा बेटा तू उसकी चिंता मत करना मैं तुम्हें और पैसे भेजूंगा पर पढ़ाई जारी रखना, फिकर मत करना। वह दिन- रात एक करके खूब पैसा जोड़ता और पैसा भेजता । एक वक्त ऐसा आया कि उसने अपने घर की छत पर पर लगे खप्पर निकाल कर बेंच दी एवं उसके जगह पैरा लगाकर उस पैसे को अपने बेटे के लिए भेज दिया । अंततः उसका मेहनत रंग लाया और उसका बेटा डिप्टी कलेक्टर बन गया । राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में वह चयनित होकर उस मेहनत की श्रेष्ठता का परिणाम दीया । बहुत दिन बाद एक बार गांव से उसके पिताजी अपने बेटे से मिलने उसके यहां गए । उसके घर में उसके बहू नाती पोते के साथ रहा, कुछ दिन बिताया । एक बार उसके मन में यह भाव जागा कि लोग मेरे बेटे को बड़ा आदमी , बड़ा साहब बन गया है बोलते हैं , वह ऑफिस में कैसे काम करता है ?  उसको ओहदा क्या है ?  जरा देखूं  वह आदमी गांव का रहने वाला सीधा साधा इंसान था । वह अपने बेटे के ऑफिस पहुंच गया तभी उसकी पहली मुलाकात एक आदमी से हुई, उसको अपने बेटे का नाम लेते हुए उससे मिलने की बात कही पीयून ने उसे पूछा वह उसका पता बता दिया  पीयून आगे जा रहा था बताने तभी रास्ते में कलेक्टर महोदय किसी काम से बाहर आए थे  वे अपने केबिन में जा रहे थे कि उन्होंने उस सीधे-साधे व्यक्ति को देखकर पूछ बैठे कि आपको किससे मिलना है । उसने अपने बेटे का नाम लेकर बताया कि मैं उनका पिताजी हूं । उनको देखकर कलेक्टर महोदय को बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक गांव का व्यक्ति अपनी बेटे को इतना पढ़ा-लिखा कर काबिल इंसान बनाया है उसको सोच उन्होंने उसकी आप-बीती पूछी । वह अपनी संघर्ष की पूरी कहानी बताया । वह एक मोची था और कैसे उन्होंने संघर्ष से जिंदगी की जंग जीत कर अपने बेटे को भी विजयी बनाया है । 

ऊपर चढ़कर डिप्टी कलेक्टर महोदय के पास जाकर कहा कि आप से नीचे कोई मिलने आया है बाहर आकर उसके बेटे को उसके पिताजी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने पूछा वह कौन है ? उसके बेटे ने उत्तर दिया वह हमारे घर का नौकर है । यह बात उसके पिताजी ने सुन लिया, मानो उसके पैर से जमीन खिसक गई और जिंदगी एक पल के लिए ठहर गया और सब उसके चारों ओर सन्नाटा छा गया और वह मूर्छित हो गया तभी कलेक्टर महोदय और उसके बेटे एवं अन्य सभी लोग वहां दौड़ते हुए आ गए ।  पानी का छींटा मारकर उनको मुर्छा से जगाया कलेक्टर महोदय को आगे से सब मालूम था उनको देखकर उस महान व्यक्ति के आंखों में आंसू भर आ गए।  उसके बेटे को उसने छूने से मना कर दिया निःशब्द होकर। इतना अपमान कोई कैसे सह सकता है । कलेक्टर महोदय ने उस डिप्टी कलेक्टर को खूब डांटा और कहा आप कैसे व्यक्ति हो ?  जिसने  आपको इतना बड़ा आदमी बनाया उस महान पिता को आपने अपना नौकर बताया  कितनी शर्म की बात है । उस पिता के होठों पर अब कोई शब्द न थे उनका शरीर शिथिल हो गया था, मुख में उदासी छा गई थी।

उस महान व्यक्ति ने अपने  घर जाने हेतु बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला और एक बार अपने बेटे की ओर देखा, वह बेटा अब शर्म से गिर चुका था।  अब अपने पिता को इस हालत में देख कुछ कर भी ना पा रहा था । बाप और बेटे ने एक दूसरे को देखा सब उनको देख रहे थे । तभी  पांव आगे बढ़ाया और दो कदम चले थे कि पांव लड़खड़ा ने जैसे हुए तो सब उनको पकड़ने के लिए हुए पर उन्होंने अपने हाथों से सब को मना कर अपने को संभाल लिया और जाने लगे कलेक्टर महोदय ने दौड़ के आगे जाकर ऐसे आप कहां जा रहे हो पिताजी  आप हमारे घर चलिए मैं आपका बेटा तो नहीं हूं पर बेटा से कम तो भी नहीं हूं उस व्यक्ति की आंखों में आंसू की धारा बह चली जैसे धीरज का बांध अब टूट गया है जिसे बांध पाना मुश्किल है । उन्होंने कलेक्टर साहब के कंधे में हाथ रख के  दबाया और मौन रुकते हुए उनके सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ गए पूरा माहौल एकदम शांत था । कलेक्ट्रेट परिसर पूरा उस महान कर्मठ व्यक्ति को देख रहा था । किसी में इतनी हिम्मत ना रही कि उन्हें कोई रोक सके, सबके दिल में दर्द हो रहा था। यह क्या हो रहा है ? कैसी घटना घट गया यहां ? सब दुखी थे ।वह महान व्यक्ति एक रिक्शा में बैठकर चला गया सबके मन  आहत थे । उसकी  बेटे के लिए कुछ लोगों ने कहा जो अपने बाप का नहीं वह किसी का नहीं हो सकता । इस कहानी को सुनके हमारे मन में भी उस पिता को नमन करने का मन किया और नमन किया जी  भरके।  बस उस बेटे के लिए क्रोध भी आया । व्यक्ति जात पात या जन्म से महान नहीं होता अपने कर्मों से महान बनता है । अपने व्यवहार , आदर्श व मूल्य विचारों से महान बनता है । 

पिताजी उदारवादी इंसान थे ।  सामाजिक कार्य में ज्यादा भाग लेते गांव के धार्मिक कार्यों में भी रूचि थी। वह चैतन्य महाप्रभु के बंगाल शैली की कीर्तन समुदाय के सदस्य थे । उनके एक गुरु थे जिनके शिष्यों में एक पिता जी भी थे । कुल मिलाकर पिताजी को घरेलू कार्य से ज्यादा मतलब नहीं था, घर पूरी मां चलाती थी । उन्हें घर के राशन सामग्री खर्चा इत्यादि का कोई ध्यान नहीं रहता था सबकुछ मां मैनेज करती थी।  वह पढ़ी-लिखी तो नहीं थी पर काफी कुशल ग्रहणी एवं बुद्धिमती  थी । हां ओड़िया भाषा का उसे ज्ञान था वह उसे पढ़ लेती थी कुछ-कुछ हिंदी भी पढ़ लेती थी धीरे-धीरे हमने उसे पढ़ना सिखाया आज वह आसानी से पढ़ लेती है सब कुछ पर लिखना किसी भी भाषा को नहीं जानती  । लिखना भी सीख जाएगी एक दिन यह पूरा विश्वास है हमें । प्रत्येक अभाव एक अवसर को जन्म देता है और दबाव कुछ प्रभाव को यदि व्यक्ति इसको समझ लेता है तो वह चुनौती का सामना दिल से करता है पर यह समझना इतना आसान नहीं है, समझ भी जाए तो उसे धैर्य के साथ धारण करना ही महान चुनौती होती है। धैर्य है तो सभी चुनौतियां अवसरों में परिणित हो जाती है। धैर्य ही साहस और सामर्थ्य के साथ समझ को बनाए रखता है । विश्वास एवं सपने ही इंसान को महान बनाते हैं धीरज एवं विश्वास रूपी दो पंखों के साथ व्यक्ति अपने सपनों के लिए उड़ान भरता है और उड़ान भरते हुए सफलता प्राप्त करता है ।  पिताजी हमेशा हौसला बढ़ाते अच्छे से पढ़ाई करते रहो वक्त आने पर हम भी खप्पर बेचके आपको पढ़ाएंगे। उनकी वह बातें हमेशा जीवन में हौसला देती रही।  मैंने दसवीं कक्षा में पूरे स्कूल में प्रथम श्रेणी के साथ पास किया था । मेरे अभिभावकों ने खुश होकर पूरे गांव में लड्डू बांटे थे। वह बहुत ही खुश थे उस लड्डू की कीमत मैं नहीं जानता पर इतना जरूर है कि प्रत्येक बच्चों के अभिभावकों ने उसे अपने बच्चों के लिए बचा कर रखा और उनको खिलाया अवश्य और इस बात को उन्होंने याद दिलाया कि यह लड्डू संजय के प्रथम आने पर उनके घर वालों ने बांटा है । इसके दो पहलू थे पहला बच्चों को यह याद दिलाना कि मेहनत करने से सफलता अवश्य मिलती है इसलिए मेहनत करते रहो । दूसरा पहलू यह था कि बच्चे अपने से प्रेरित होंगे क्योंकि किसी को अच्छा करते देख कोई अच्छा करता है उस दूसरे को मुस्कुराते देख लोग मुस्कुराते हैं ।

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