Aapdayen

 

मानवता का करुण क्रंदन 

 

हर तरफ हो रहा चित्कार 

 

प्राकृतिक  आपदाओं  से 

 

आज कांप उठी है संसार 

 

बढ़ रहे  मौत के  आंकड़े 

 

लोग हैं  खड़े  बेबस  पढ़े 

 

सब कुछ  है थमा – थमा 

 

रो रहा  है जमी -आसमा 

 

जग के सुने  कौन व्यथा ?

 

रो पड़ी  है  यहां मानवता 

 

कर रहे हैं जो भी सामना 

 

उन  हाथों को  है थामना 

 

उठो अब तुम ए  महामना 

 

दूर करो यह सब विडंबना 

 

आन पड़ी है विपदा की घड़ी 

 

टूटने लगा है जीवन की कड़ी 

 

सुख दुख जीवन की दो घड़ियां 

 

न जाने कब किस पर  बीतेगा ?

 

मानवता के लिए जो जिए यहां 

 

वह सदा जीवन  समर  जीतेगा

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