Hamara Sangharsh | हमारा संघर्ष

a person in a black jacket

यही कोई 1:30 बज रहे होंगे तभी शौर्य का कॉल आया उस वक्त सागर  ऑफिस में बैठा था। उसने कॉल रिसीव की और बात करने लगे यह दिनांक 16/ 02 /22 की घटना है । शौर्य ने सागर से उसके जीवन से जुड़े एक वाकया पर बात करने लगा । बताया कि यार मेरे गांव का एक लड़का है वह फरिदाबाद में रहता है आज उससे बात हुई तो तेरे जीवन के अनुभव को जो तू मुझसे बताया करता था उसको सुनाया तो काफी प्रेरित हुआ । वह बोल रहा था कि गांव वाले जब मेरे बारे में बोलते थे कि वह जितना होनहार है उतना या उस लायक उसे सर्विस नहीं मिला तब मैं बहुत ज्यादा हताश हो जाता था। उस वक्त मेरे मन में निराशा का भाव घर कर गया था और मुझे आत्महत्या करने का विचार होता । मैं निराशा के उस सागर में डूब जाता कहीं भी आशा की किरण दिखाई नहीं देती थी । शौर्य यार तु किसके बारे मे कह रहा है और मेरे किस बात को उसे बताया भाई, तभी सागर ने उस लड़के के बारे में पूछा कि वह लड़का क्या करता है ? शौर्य बताया इंजीनियरिंग किया है, अभी यूट्यूब में पढ़ाता है, एक चैनल बनाकर तथा वह कॉलेज में एढाक के रूप में पढ़ा रहा है।  सागर  ने कहा उसे क्या-क्या  बताया तू मेरे जीवन के अनुभव के बारे में इस पर शौर्य ने कहा उसको बताया कि मेरा एक दोस्त है सागर वह एक दिन मुझे बताया था कि कैसे उसे  सभी वृद्धों, जो जीवित हैं चाहे वह सफल हो या ना हो, केवल जीवित है उन सबको मुझे सलाम करने का मन करता है । उनको  मै तो तहे दिल से सलाम करता हूं कि आप महान हैं जो आप अभी तक जीवित हैं, अपने जज्बातों को लेकर जिंदा है । इस बात को सुनने के बाद वह बोला कि सच है भैया, मुझे बहुत अच्छा लग रहा ह आपके दोस्त ने जो बात कही है वह बिल्कुल ही सत्य है एवं व्यवहारिक है। इस बात को बोलते हुए शौर्य भी गौरवान्वित हुआ व महसूस भी कर रहा था कि कैसे यह बात उसके उस निराशा हताशा में उबर का जीवन के संघर्ष से जुड़ने की प्रेरणा देती है । सागर ने जो अनुभव बताए थे उसको सागर ने कहीं सुना नहीं था उसे जिया है महसूस किया है अपने दिल से और वह व्यवहार में तब्दील होकर अल्फाज तक आए होठों पर । उसके बाद में उस लम्हों में खो गया सागर और शौर्य ने कहा मुझे अभी काम है थोड़ी देर में तुझे मैं पूरी बात बताऊंगा और कॉल कट कर दी। 

शौर्य का बाद मे कॉल आया फिर उसने बताया कि  संजय की बैच का वह लड़का है अभी वह फरीदाबाद में प्रोफेसर के पद में है नियमित। वह पहले एनआईटी रायपुर में पढ़ाया है । घर की जिम्मेदारियों का पूरा भार उसी के कन्धे मे ज्यादा  है । वह बहुत ज्यादा स्ट्रगल किया है, घर छोटा है दो तीन बहन है वह अकेला है उन सब की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है। शादी ब्याह पढ़ाई- लिखाई आदि । सरकार की योजना सरकार के बदलने पर कुछ नई भी आती है तो कुछ को तरजीह नहीं दी जाती है । वह कॉलेज में पढ़ा रहा है अभी वह सफल है परंतु दुनिया , गांव वाले कहते हैं कि वह योग्यता के अनुरूप पद नहीं पाया इसको सुनके उसके मन में एक मलाल हमेशा रहता है। यह बात उसने खुद शौर्य को बताया था। हाल ही में वह  पंचायत चुनाव में ड्यूटी किया है जिसका एक अनुभव उसे मिला है। शौर्य से उसका बातचीत अपने बहन की शादी करने के उद्देश्य से पूछताछ हेतु उस दिन हुआ था शौर्य के मौसा के लड़के के लिए उसके बहन की शादी के सिलसिले में जिसको लेकर दोनों बातचीत किए शौर्य अपने मौसा के घर के खस्ताहाल स्थिति को कैसे सीधा- सीधा कह देता। साथ ही उसका भाई ( अपने मौसा का लड़का ) भी अपने कैरियर को लेकर शायद ज्यादा संजीदा नहीं था यह उसने सागर को बताया । शौर्य ने उसको बार-बार देख लेने की बात व सोच समझकर तय करने को कह रहा था कि वह इस बात को समझ जाएगा। शौर्य अप्रत्यक्ष रूप से क्या समझाना या कहना चाह रहा है शौर्य यह संशय में भी था कि वह समझा होगा कि नहीं मेरे बातों को जिसे अंकल ने यह कह कर खारिज किया कि वह समझदार है समझ जाएगा फालतू का परेशान मत हो तू ।

शौर्य ने बताया कि मेरे मौसा तो संकीर्तन से जुड़े लोग हैं, जमीन बाड़ी ही एक आधार है । लगभग 10 एकड़ है उसी के आधार से वे लोग तय करने की सोच रहे थे।  शौर्य का मौसा भी ज्यादा प्रतिबद्ध नहीं है  उसका भाइ कैरियर को लेकर भी स्पष्ट नीति का पता नहीं है, बताया घर को अभी-अभी बड़ी मुश्किल से बनाए है। आगे तरफ जिसमें रसोई व टॉयलेट भी अभी भी अपूर्ण है, काम जारी है धीमी गति से । जमीन तो है पर रहन-सहन ज्यादा एडवांस नहीं है बाद में शौर्य को यह लग रहा था कि मैं शायद उससे सही बात नहीं कर पाया वह क्या सोचेगा ? । पर संकेत पूर्ण बातों को वह समझ गया होगा अंकल ने कहा। फिर कॉल करके बात किया  तो बताया कि अपने बहन का कहीं और शादी तय हो गया इस पर शौर्य को संतोष हुआ । सामान्य बातचीत होते- होते हम अब गहराइयों की ओर बढ़ने लगे वह बोला भैया आप सब आगे हो और आपको देखकर हम आगे बढ़े हैं आपके पीछे-पीछे । आपके पढ़ाई – लिखाई एवं तैयारी के प्रति समर्पण की बहुत बात सुनी है । आपको देखते हुए हमने बहुत कुछ सीखा भी है भैया । अभी जब मैं गांव आता हूं तो अपने संग हैं उन्हीं के साथ भी अब बैठना – उठना नहीं हो पाता है । अब तो वह दोस्त सोचते हैं कि वह अब बड़ा आदमी बन गया है कहते हैं, बैठने पर उनके साथ उनके प्राथमिकताएं अलग हो जाने से बैठने में तालमेल नहीं हो पाता है।मेरे जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव का दौर  चला है जो काफी अनुभव दिया है । मुझे एक वक्त तो  ऐसा लग रहा था कि मैं सुसाइड कर लूं ऐसा इरादा हो गया था और बहुत बुरे दौर से गुजरा हूं भैया राजेश ने शौर्य को बताया । शौर्य ने बताया राजेश ऐसा बुद्धिमान बालक है जिसने कक्षा दसवीं में  पांच विषय में 100 में 100 अंक प्राप्त किया था । टॉपर था वह अपने समय में । संजय लोग भी जब वह आता है तो उसके सामने यह बात कह देते हैं बेधड़क कि तुझे तेरी काबिलियत के अनुसार नौकरी नहीं मिल पाया । यह बात सुनकर वह निराश हो जाता है और उसके अंदर कुंठा का भाव घर कर जाता है । 

बात करते-करते उसने यह बताया कि कैसे सागर के लाइफ को जो उसने उसे अपना अनुभव बताया था  उसको राजेश को कहा । राजेश अभी शादीशुदा है । तेरा बात मेरे लिए टैग लाइन हो गया है मेरे जीवन के लिए तभी सागर ने पूछा कौन सी बात ? कैसे तूने लास्ट टाइम में B.Ed किया फिर टीचर शिप में नौकरी लगा । यह सभी अंत में ही हुआ । वह कहता है कि इस दुनिया में सभी बुजुर्ग व्यक्ति को प्रणाम करने का मन करता है जो अनुकूलन का प्रतीक है उसके नजरिया में कि वह सरवाइव कैसे किया है ? व्यक्तिगत जीवन और सामाजिक जीवन की चुनौतियों से वह कैसे उस अवस्था तक पहुंच गया है । इस जीवन के तूफानों तड़ीत झंझावातों  से खुद को बचा के यहां तक ले आया है और खुदको खड़ा किया है भले वह कुछ बना हो या ना बना हो, वह पूजनीय है, वह सम्माननीय है। तभी राजेश ने कहा भैया वह बिल्कुल सही कह रहा है। राजेश ने कहा भैया आपके साथ बात करके आज मैं बहुत सुकून महसूस कर रहा हूं । शौर्य ने तभी कहा देखो आप अगर कुछ भी बन जाते हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि अब सब कुछ हो गया जैसे बात नहीं है । उस समय तुझे और मुझे बोल रहे होंगे लोग कि वह यह नहीं पाया, वह ये नहीं पाया ।  यह क्रम तो अभी भी चल ही रहा है। एक बार नहीं कई बार उसे प्रूफ करना पड़ता है। अगर आप एक बार राजा या आईएएस, आईपीएस बन जाते हैं या कोई भी जो चाहा वह पद पा लेने से बात समाप्त नहीं हो जाती है, आगे आपको फिर नई चुनौती का सामना करना पड़ता है, आपको फिर नए तरीके से स्वयं को सिद्ध करना पड़ता है । पद तो बहुत से लोग पा लेते हैं पर सम्मान पाना  उससे भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है। सभी आईएस समान रूप से सम्माननीय नहीं हो पाते या सभी शक्ल राजा नहीं बन पाते । चुनौतियों का क्रम या सिलसिला जीवन भर चलता रहता है, बस उसके अवस्था स्वरूप बदल कर आते हैं । पर इसमें इससे हमें जूझने के लिए वही सकारात्मक मनो मनोवृत्तियों की ही आवश्यकता होती है। इसको सुनकर राजेश को जीवन की उलझन को समझ कर सुलझाने में सहायता मिला। इस वार्तालाप से वह बहुत खुश एवं अपने आपको ऊर्जावान महसूस कर रहा था । 

अभी वर्तमान लॉकडाउन के दौर में वह लगातार यूट्यूब में अपना चैनल बनाकर वीडियो पढ़ाई के संबंध में डालते जा रहा है। यह एक अच्छा पहल है उसका । वह अपने पत्नी को भी वीडियो अपलोडिंग करवाता है। निश्चित रूप से यूट्यूब अभी पढ़ने सीखने या नॉलेज प्राप्त करने के लिए सबसे बड़ा माध्यम बनता जा रहा है। इस दौर में अगर तुम चार लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने के लिए कार्य कर रहे हो तो बहुत बड़ी बात है । अभी लॉकडाउन में तो हमने यही समझा वह सीखा है । कोई किसी को कुछ दिया है तो उसी की बात हो रही है,  पाने की बात नहीं ।  वह राजा बन गया था , उसका पैतृक संपत्ति इतना था, इस सब का कोई महत्व नहीं है। आज के दौर में तुम क्या-क्या हो ? 

कैसे हो ? सामाजिक जीवन में खुद के लिए आपकी सोच कैसी है ?  हम इस कोविड-19 में यही तो जाने हैं।  जो कुछ दिया है उसी की बात हो रही है। कहीं कोई कुछ बना है उसकी नहीं। पर सम्मान प्राप्त करना बहुत महंगा है, बहुत बड़ी चुनौती है।  लोग अपने बच्चों से अपना सम्मान तक नहीं करवा पाते हैं , बच्चे भी आज उनको सम्मान नहीं कर रहे हैं । तो सोचो यह क्या है ? और कैसे हैं ? अगर आप बच्चों से सम्मान पा रहे हो ऐसा कृत्य कर रहे हो तो उसके क्या कहने , यही जीवन का सार भी है । 

राजेश बोला गांव आने से लोगों से घुलमिल कर नहीं रह पाता यह भी एक बात मन में रह – रह कर कसकती है। शौर्य ने कहा अगर  भले ही गांव में नहीं निकलता घुल मिल नहीं पाता यह कमी है, यह मुझ में भी है, घुल मिल नहीं पाते तो कोई बात नहीं मुझे भी गांव के लोग तेरे से बड़ा अमिलनसार समझते हैं।  कहा मुझे भी यह बोल रहे  होंगे कि शौर्य आता जाता नहीं है अपने लंगोटिया मित्रों के साथ । लेकिन अगर आप अपने कार्य क्षेत्र में सम्मान पा रहे हो यह बहुत बड़ी बात है । ऐसे बहुत से अवसर मिलते हैं, वहां हमको  अच्छा कार्य करते रहना चाहिए । वैसे सब को खुश करना एक बहुत बड़ी चुनौती है । हमारे संघर्ष के दौर के बहुत से बातों को शेयर किया और बताया कि हम कैसे एक दूसरे को सहारा बने । शौर्य के 2008 की घटना जिसमें सिलेक्शन नहीं हो पाया था । उस वक्त उसे सभी लोग पूछते थे क्या हुआ ? उस समय बहुत परेशानियों के दौर से वह गुजर रहा था। वह बोला उनको वास्तविकता बताने जाऊं तो कोई सुनने के लिए तैयार नहीं, उनको इससे कोई लेना-देना नहीं था मेरी भावनाएं कितनी आहत होती थी।  वह मैं जानता हूं और कोई नहीं लोगों से मुझे डर लगता था । उसका सबसे बड़ा वजह यह था कि अब लंबे समय में मेरे पास कोई परिणाम सकारात्मक नहीं था । मेरा रेंगना, उठना- बैठना बंद हो गया था । कहीं भी मैं अगर जाता तो वहां मुझे लोग ताना मारने की तरह पूछते और मैं परेशान होता कुछ बना कि नहीं ।  बताना चाहूं तो समझने को तैयार नहीं ऐसा वक्त भी जिया है। मेरा भाई भी खुद पूछता था और उनके पूछने के अंदाज में जानने की सीखने की इच्छा कम और उपहास के भाव ज्यादा होते थे । उस वक्त मुझे कलेक्टर साहब कह कर मुस्कुराते थे, वह मुस्कुराहट उपेक्षा के होते थे ना कि सम्मान के । यह शब्द कहने को तो बहुत छोटा है कैसे ?  क्या हुआ ? परंतु वह बहुत गहरा है सारा दारोमदार इस वाक्य की परिस्थितियों में पूछने वाले की मनोभाव पर निर्भर करता है कि वह उसे कैसे पूछ रहा है। उसके लिए तो सामान्य सा प्रश्न है पर हमारे लिए हमारा वजूद है उसके उत्तर देने में जिसका काफी गहरा प्रभाव हम पर पड़ता था । इसका कोई उलाहना के रूप में तो कोई सहभागी के रूप में पूछते पर सहभागी बहुत कम मिलते । शौर्य ने कहा देखो  राजेश तुम किसी को सफाई मत दो, सफाई दोगे तो उसको समझने सुनने वाले नहीं होते हैं । जब मेरा अच्छा रैंक आने के बाद भी चयन नहीं हो पाया उस वक्त मैं पूरी तरह से आशान्वित था कि मेरा चयन हो ही जाएगा, छोटा ही सही कोई पद मिल ही जाएगा पर नहीं मिला। तब मैं काफी मायूस हुआ और मेरे घर वाले भी । परंतु आम लोगों के लिए गांव वालोंं के नजर में मैं मजाक बनकर रह गया जिसका अधिकांश लोगों ने पूछने के बहाने बहुत मजा लिया । मुझ पर क्या बीत रही है  ? उस वक्त किसी को कोई परवाह नहीं था , मतलब नहीं था । जब मैं अपना स्पष्टीकरण देता क्यों चयन नहीं हुआ तो उसको सुनने के लिए कोई तैयार नहीं रहता। मुझे बेवकूफ ही समझा जाता इसको अनुभव किया।  तुम्हारा क्या कहना है इस बारे में राजेश  शौर्य ने यह बात पूछा, स्पष्टीकरण को लोग बहाना बना रहे हैं समझते हैं । कोई वकील भी तेरे तरफ से समझाने की बात  रखे तो वह भी असफल हो जाएगा उनको समझाने में क्योंकि वह समझना ही नहीं चाहते। यह सबसे बड़ी वजह है जब मेरे पास रिजल्ट आया सफल हुआ तो कोई मुझे पूछने वाला भी नहीं था तो सुनने वाले  की बात तो बहुत दूर की बात है । कोई पूछे तो मैं उसे सफलता के बारे में बताऊंगा पर कोई मिलता ही नहीं गांव में ।  पहले जो पूछ रहे थे उनका इरादा अलग था अभी नहीं पूछ रहे हैं उसका भी इरादा वही था। वह निष्पक्ष नहीं होते तुम्हारे सफलता असफलता को समान रूप से नहीं लेते हैं । शौर्य ने राजेश को कहा यह सबका नेचर है कि यह सब के ग्रुप में होता है जो हमारे साथ हो रहा है । राजेश वह सब के साथ होता है , हुआ है, और होने वाला है । अगर तुम इन सबको  सोचोगे, इनके  फेर में पड़ोगे  तो निश्चित ही आत्महत्या के विचार तुमको घेर लेंगे । वह नकारात्मक विचार अवश्य ही आएंगे जो तुम्हें कोई अनिष्ट कार्य करने को दुष्प्रेरित करेंगे । यह विचार भी मेरे में   आता उस समय मैं भी सोचता उस वक्त बार-बार इंटरव्यू में फेल हो रहा हूं उसका वजह मैं ही तो नहीं हूं, परंतु  टेंशन तो मैं ही तो ले रहा हूं, इस लाइन में खड़ा मैं तो ही हूं, सफल होने के लिए रास्ते में जो जिगजैग है उसको तो मैंने ही चुना है । अगर कोई औरों की तरह संतोष होकर कोई छोटा मोटा पोस्ट पाके अपने पत्नी की बाहों में बाहें डाल कर घूमता रहता  गाड़ी में बैठ कर तो क्या हो जाता मेरा । यह सोचता मन इन राहों को मैंने खुद चुना , इसके लिए कई सपनों को  अपने को कई बार कई दिन- रात सोचता रहा हूँ  फिर जो हो रहा है इसमें क्यों हो हम औरों कि सोचते हैं । इन राहों में जो लड़का है कहीं गिरे कहीं मुस्कुराए कुछ खोया कुछ पाया कुछ झटका भी खाए जो भी हुआ इस दौर में कोई गम क्यों हो आखिर ? हमने खुद को ही आजमाए हैं। यह सारे बातें राजेश से होने के बाद राजेश काफी खुश हुआ और बताया कि जुलाई के महीने में जब वह आएगा तो वह मुलाकात करेगा । शौर्य ने कहा बिल्कुल आना बाद में सोचा कि  यह बात कितना महत्वपूर्ण है जो हम इन अनुभवों को संघर्ष करके पाया है । 

शौर्य ने कहा सागर मैंने तेरे बारे में सोचा तो लगा कि तेरा जीवन भी संघर्ष से अनुभव से भरा पड़ा है । अभी भले ही तुझे सामान्य जीवन लगता होगा पर वह सामान्य नहीं है, साधारण नहीं है। मुझे 2008 में उठाने में असफल होने के बाद वास्तव में अगर तू नहीं होता तो मैं रिकवर नहीं कर पाता यह जानता हूं । उस वक्त तू मुझे डांटा और समझाया था दुनिया में हजारों आदमी है कितने असफल हो रहे हैं इसका मतलब यह नहीं है कि वह सपने देखने छोड़ दें, संघर्ष करना छोड़ दें । यह वक्त खुद को और समझने का है, आजमाने का है, ऐसा तू कहता और मैं चुपचाप सुनते रहता। एक फिल्म का गीत जिसे तू हरदम सुनाता मुझे, दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है औरों का गम देखा तो खुद का गम भूल गया। वास्तव में इस गाना से हमें बहुत बड़ा आधार एवं सहारा मिला , सीख मिली मुश्किल दौर से गुजरने के वक्त और फिर हम सब कुछ फिर नए सिरे से शुरू करने और पढ़ाई में जुट जाते क्यों सही है ना तभी सागर ने कहा एक दम सही बोल रहा है दोस्त।  इन सारे घटना को समान्यिकरण करना बहुत बड़ी बात है।  राजेश ने मुझे बातचीत से पूरे फ्लैशबैक में ले गया और मैंने वह् अनुभव जब संघर्ष के दौर में थे तो खुद को कैसे नकारात्मकता से बचाते हुए सफलता को पाया यह बताया। जहां असफलता की बात हो जाता या बात आ जाती है तो खुद को बहुत बड़ा झटका लगता है । जब हम असफल हो जाते हैं तो लोग जानते हैं तो उसका भर्ता बना देते हैं, इन सब बातों को फिर सामान्य करना बहुत बड़ी चुनौती होती है।  तभी सागर ने शौर्य को कहा वास्तव में हम सभी दोस्तों को लेकर अगर हम बात करते हैं तो हमारा ग्रुप में सबके जीवन के संघर्ष पढ़ाई – लिखाई जो भी किए हैं वह कोई सामान्य बात नही है ।

मानव के साथ एक वक्त ऐसा भी आया जब हम आवारा घूमते थे मानव अर्दली का काम कर रहा था तो सागर वही  माली बनके फूल उगा रहा था । उस वक्त में उन्होंने जीवन के संघर्ष को स्वीकार कर लक्ष्य को साधना  कभी नहीं भूला । 2003 के बाद 2005 में पीएससी फिर 2008 में पीएससी परीक्षा होना एक अनिश्चितता का दौर था । वह जहां हमने लक्ष्य को साधने हेतु रास्ते बदले अनुकूलन करते हुए संघर्ष किया शौर्य ने सुन कर कहा कि यह सत्य है। जसवीर के असफलता में उनके घर का बहुत बड़ा हाथ है वह उसको मानसिक सपोर्ट नहीं कर पाते वह जरूर आर्थिक रूप से सपोर्ट करते थे। जसवीर ने अपने घर के सिद्धांतों को स्वीकार कर लिया वह आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग नहीं कर पाया वही तेरी परिस्थिति एकदम विपरीत होने के बावजूद भी तूने अपनी परस्थिति से बाहर निकलकर सोचा मुझे करना है कुछ भी हो जाए कभी भी उन परस्थितियों को असफलता का वजह नहीं ठहराया न् ही उनको बनने दिया  शौर्य ने सागर से कहा जो सही भी था । जसवीर का अपने घर के प्रति एक दहसत वाला मन बना रहता था । जब भी पैसा भेजते साथ में कितना पैसा भेजे हैं इसको वे बताना नहीं भूलते जिसके कारण वह मानसिक रुप से परेशान रहता। राजेश भी प्रताप को बताया कि परिवारिक परस्थिति काफी प्रभावित करता है । शौर्य ने राजेश को कहा देखो यह तो है पर इतना इसको मत सोचो करने वाला इन परिस्थितियों की परवाह नहीं करता वह जानता है कमल तो कीचड़ में ही खिलता है । राजेश ने संघर्ष करते हुए आज अच्छा मुकाम पर पा लिया है। शौर्य ने कहा बस देने की शुरुआत कर वहीं से सब कुछ सही होता जाएगा। बड़ा आदमी ही बन जाना बड़ी बात नहीं है ना ही बड़े पद पा लेना बड़ी बात है। 

सागर ने शौर्य से कहा मेरा सेकेण्ड इनिंग भी ऐसे ही शुरू होता है ।पहले इनिंग्स मे हम  वापस हो गए थे जो जैसा करना चाहता है वह अब उनके अपने हिसाब से करना शुरू करें । उस वक्त मेरे सामने क्या करुं ? कैसे करुं ? कहाँ जाउँ ?  आगे क्या पारी खेलेंगे ? कैसे खेलना होगा ? इसका भविष्य कैसे होगा ? बस यही सवाल मन में चलते रहते थे जिन का हल मुझे नहीं मिल रहा था। उसी वक्त मैंने b.ed की प्रवेश परीक्षा दिया  जिसमें पूरे छत्तीसगढ़ में शासकीय कॉलेज हेतु मात्र 26 सीट थे जिसमें मेरा छत्तीसगढ़ में ऑल ओवर रैंक 25 वां आया वही मेरी सेकेण्ड पारी का  आधार बना और फिर हम बिलासपुर पहुंचे बी. एड. करने हेतु । यह मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट था । जब मैं उस वक्त घर में बैठा था तब एक दिन मां ने मुझसे  पूछा  कैसे तेरा कुछ नहीं हो रहा है बेटा ? तभी मैंने मां से कहा मां देखो मैं तपस्या में बैठा हूं, सफलता निश्चित है पर ईश्वर  प्रसन्न कब होंगे यह् मैं नहीं कह सकता । फल तो अवश्य मिलेगा इस पर मुझे पूरा यकीन है, सफलता कब मिलेगा उसके लिए मेरे पास तारीख नहीं है । वह एक बहुत बड़ा मानसिक सपोर्ट रहा कई बार हम भी बहुत परेशान होते, दिमाग फिर जाता शौर्य ने कहा।  तभी सागर ने बताया जब हम b.ed कर रहे थे उस वक्त पंचायत के द्वारा शिक्षकों की भारी मात्रा में भर्ती हो रहा था।  हमारा एक साथ हुआ था उस समय b.ed एक वर्षीय था । 2008 में ही मैंने b.ed पास की उससे पहले भर्तियों के बारे में जाना खुलकर बड़ी हैरानी होती । उक्त सभी भर्तियां पंचायतो के माध्यम से हो रहे थे जो भ्रष्टाचार की चरम सीमा में थी । यह सब हमें अपने भविष्य को लेकर सोचने पर मजबूर करती हम परेशान होते मन में नकारात्मक ख्याल है आते लगता जाकर कहीं बंदूक उठालूँ और इस तरह की भ्रष्ट गतिविधियों पर अंकुश लगाऊं, पर फिर सोचता इससे आखिर होगा क्या ? B.ed मैं और लार्सन साथ में रूम पार्टनर रह किए । सागर में कम्युनिष्ट की विचारधारा उत्पन्न होने लगी थी,  दो नाली की बोली मन में घूमता और बंदूक उठाने का मन करता धीरे-धीरे खुद से लड़ते हुए सकारात्मकता को ही अपनाया । तभी शौर्य ने कहा हमारा ग्रुप ही हमारी बहुत बड़ी शक्ति रही । हम अपने अपने विशेषताओं अलग-अलग के कारण ही समूह में बंधे जो हमारी उपलब्धि रही । 

सफलता के लिए हमको लोगों ने अलग कुछ करने की सलाह भी देते पर हमने उसको ध्यान ही नहीं दिया और हमेशा दिल और दिमाग से कर्म किया और सफलता के रास्ते को तय किया। उसी बीच में शादी हुआ तभी बहुत ज्यादा स्थिति क्लियर हुआ लोगों की सोच क्या है ? यह खुलकर सामने आने लगा। शादी के समय लड़की वाले शौर्य के गांव वालों ने उनको कहा शौर्य के बारे में वह तो स्कूल जाता ही नहीं है । पता नहीं करता क्या है ? कोई बोलता वह तो किसी से बात भी नहीं करता है, गुमसुम रहता है, ऐसे शौर्य के बारे में बोलते जो सही नहीं था । यह तो दुनिया वाले हैं और यह उनकी करनी भी । 

सागर ने शौर्य से कहा मैंने अपना प्रथम पारी संघर्ष का कैसे खेला ? जब मुझे बेरोजगारी भत्ता 6000 मिला तब उस वक्त 5000 निकाला और उसको लेकर बिलासपुर गया तभी शौर्य ने कहा तू बहुत साहसी था मेरे दोस्त, तुम्हारा मेहनत और ज्यादा रहा हमारे पीछे घर की आर्थिक सपोर्ट की स्थिति के अनुरुप रहा परंतु तेरे परिस्थिति के ऊपर उठकर घरवाले ने तुझे सहयोग किया जिसको तूने साकार भी किया ।  मैंने भी उस सच स्वीकार किया । सागर ने कहा मेरे घर वालों ने मुझे पूरा सपोर्ट किया अपने स्थिति वह लड़ते हुए मुझे पढ़ाया। शौर्य ने कहा तू उनको कभी मत भूलना उनके गलती होने पर भी उनको याद रखना । उसने कहा अपने जीवन की इन संघर्षों को लोगों से शेयर जरुर करना क्योंकि उससे उनको प्रेरणा  मिलेगी उन्होंने जो किया है वह भी हमारे ही तरह है हमने आम से ही खास तक का सफर तय किया है । 

युवाओं को रास्ता मिलेगा की हवा में एक ऐसा दौर तो आता ही है जिसमें वह हताश, निराश हो जाता है । उस वक्त वह स्वयं को संभाल लेता है तो ठीक नहीं तो वह हताशा के घर में डूबकर नकारात्मक कार्य कर बैठता है। यही समय उसकी जीवन की क्रांति अवस्था होती है जो आगे के पूरे भविष्य का निर्धारण करती है । नकारात्मकता में वह स्वयं उनका अपना लेता है। इस समय वह मेन्टी की भूमिका में होता है अगर उसको सही मेंटर मिल जाए तो फिर जीवन खिल उठता है नहीं तो वह मुरझा जाता है। अर्जुन को कृष्ण ना मिले होते तो वह युद्ध कर ही नहीं पाता। इसमें कृष्ण मेन्टर तथा अर्जुन मेंटी कि भूमिका मे रहे ।  सचमुच जीवन एक महाभारत ही है खुद को सही रखना है तो स्वयं को बांटते रहना चाहिए या पढ़ते रहना चाहिए । बाँटने का तात्पर्य है स्वयं के अनुभवों को दूसरे लोगों को बताना जिससे वे स्वयं को समझ सके ।   अगर मैं खत्म तो सब खत्म , परंतु हमारे द्वारा दूसरों के जीवन के में अगर कोई सकारात्मक परिवर्तन  लाये या ला पाये तो उसके अंदर हम जीवित रहेंगे वह कहेगा फलाना भैया  बहुत अच्छा था, वह याद करेगा लोगों में हमको हमारे अच्छाइयों को वाटिका कि तरह सहेज कर रखेगा । लोग चले जाते हैं पर उनकी कर्म वृक्ष के फल सदैव विचारों में जीवित होते हैं जो  फूलते – फलते रहते हैं। एक और चीज मैंने अनुभव किया है सागर  अगर हम सोचते हैं कि मैं अपने परिवार में बचा रहूंगा मेरे बच्चों में तो वह गलत है । गांधी अपने बच्चों के दम से नहीं था । कलाम के परिवार नहीं होने के बावजूद उनको परिवार की आवश्यकता नहीं पड़ी या कहें  कमी नहीं रही सारा जगत उनका परिवार बन गया । अगर कोई है तो वह अपने कर्मों से है । जितने भी लोग हमारे संपर्क में आते हैं उनमें खुद को बांटते रहना है, संयोग से हम शिक्षा के विभाग में ही हैं जो बहुत बड़ा सकरात्मक पक्ष है हमारा । हम कलाम के लेवल तक तो नहीं लेकिन उनकी पीछे जरुर   चल सकते हैं , चलना चाहिए भी ।

सागर ने कहा मैं जब भी स्कूल निरीक्षण में जाता हूं तो लोग मुझे तभी सुनेंगे जब मुझमें गुणवत्ता होगी विश्वसनीयता  होगी उसके बाद वह मेरे पीठ पीछे बुराई नहीं करेंगे । मेरे आदेश व निर्देशों का पालन करेंगे  यह सब मेरे पीठ पीछे भी काम काम करेंगे जो सफलता की नीव होगी। हम इनको लाठी पकड़ते  हांका नहीं कर  सकते  है, यह अटल सत्य है हटेंगे तो भी वह सफल नहीं होगा । इससे समाज में नवाचार या परिवर्तन नहीं हो सकता है । वर्तमान समाज तार्किक समाज है ना कि परंपरागत यही सब तो सोच रहा था मैं । शौर्य ने कहा अब तो संघर्ष का दौर खत्म लेकिन अब हम सर्विस में हैं फिर भी हमें ऐसे संपर्क को लोगों से बनाए रखना है जिससे कार्य अच्छे से चले हमारे अनुभवों का लाभ उनको मिले तभी सागर ने कहा सही है । मित्र वर्तमान में आदमी सुनना कम चाह रहा है और बोलना यदि आप किसी को सुन  लेते हैं तू वह कार्य उसके मन से आक्रोश को कम कर देता है जैसे गुब्बारे में हवा भरी है तो उसको कम कर देने पर शिथिल हो जाता है वह फट नहीं सकता है, वैसे ही आज के दौर में आदमी अंदर से गुब्बारे की तरह  फूल रहा है  हवा नहीं निकालेंगे तो भरके वह फट जाएगा या  हमारे काम का नहीं रह पाएगा दोनों हो सकता है । खुद अपडेट रहो दूसरों को भी अपडेट करते रहो तथा बातचीत जारी रखो जिससे कोई गुब्बारा फटे नहीं कभी ।

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