Ummeed | उम्मीद

बात उन दिनों की है जब संजय शिक्षक रहा, वह पहली बार एक अशासकीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हुआ। उस वक्त उसकी उम्र करीब 23 वर्ष रही होगी। साल 2004 में वह ₹400 प्रति माह वेतन में काम करने लगा। वह स्वयं पीएससी की तैयारी का सपना पूरा करने के लिए वह ठान चुका था। उसे पढ़ना-पढ़ाना बहुत ही अच्छा लगता है, वह जब नियुक्त हुआ तब सोचने लगा कि मैं कोई भी काम करूंगा तो समाज इसे किस नजरिए से देखेगा। वह अपने व्यवहार के प्रति काफी जागरूक हो गया, कुछ समय तक वह सोचता रहा कि मैं एक शिक्षक की भूमिका को कैसे पूर्णतः न्याय दिला पाऊंगा? कैसे उसकी सम्मान को पा सकूं जो एक शिक्षक को मिलता है? उस वक्त उस गांव में पहली बार हाई स्कूल की कक्षाएं संचालित हो रही थी। पहला बैच था जिसको लेकर ग्रामीण जनों की बहुत आशाएं थी। संजय इन आशाओं को समझता था और उसे शिक्षक स्टाफ के बीच बताया भी करता। सभी स्टाफ एक टीम की तरह एकजुट होकर कार्य कर रहे थे, परंतु संजय के विचार अन्य शिक्षकों से कुछ मामलों में अलग ही था। सभी उसके शिक्षक साथी विद्यार्थियों को कड़े अनुशासन के साथ दंड की नीति से कार्य करते रहे पर संजय यह सोचता कि अनुशासन श्रद्धा से जितना फलदाई होगा कड़े अनुशासन से नहीं। आत्मानुशासन को उनमें जाग्रत करने की वह सोचता रहता। वह मारपीट की बिल्कुल विपरीत था, उसका मानना था कि प्रेम की भाषा तो जानवर भी समझते हैं फिर हम तो मानव हैं, श्रेष्ठ प्राणी इस जगत के। 

उस वक्त यही सोचता कि कैसे में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़े ? क्या मेरे विषय में गुणवत्ता सही होगा ? सभी विषय में अच्छा होने से ही सर्वांगीण रूप से अच्छा होगा । वह यह बखूबी जानता है कि विद्यार्थियों में स्वतः अनुशासन उत्पन्न हो जाएगा तो सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। विद्यार्थियों में अनुशासन हीनता थी, वह लगन से पढ़ाई नहीं करते इसीलिए उसके शिक्षक साथी उनको दंडित करते पर उसका प्रभाव ज्यादा नहीं टिकता । संजय दुखी होता इस स्थिति से। वह बहुत मेहनत के साथ स्वयं पढ़कर अध्ययन करता है उसके बाद कक्षा शिक्षण करता जो प्रभावी रहता, परंतु अनुशासनहीनता उस प्रभाव में बाधा बनती । उसके गहरा अध्ययन के पीछे लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी करना भी एक प्रमुख वज़ह रहा। परंतु उसे पढ़ने पढाने में बहुत आनंद आता है वह दूसरों को कहता । एक दिन वह जब कक्षा शिक्षण कर रहा था तभी कुछ विद्यार्थी उदंड मचाने लगे इससे आहत हो वह पढ़ाना बंद कर बाहर निकल आया और अच्छे से सोचने लगा, यह कब तक चलेगा आखिर ? इसमें गलती किसकी है ? इसके लिए जिम्मेदार कौन है ?  वह इन प्रश्नों के उत्तर खोजने लगा । क्योंकि वह स्थाई समाधान की तलाश में था ।

सातवीं कक्षा में वह पढ़ाने गया परंतु उसका मन अशांत था उस दिन । वह चुपचाप बैठ गया विद्यार्थियों ने अपने शिक्षक को देखकर जान लिया कि  आज सर परेशान हैं । वे पूछने लगे क्या बात है सर जी ? संजय ने कुछ देर शांत माथा पकड़ कर रहने के बाद कहा बेटा आपकी दीदी एवं भैया लोग पढ़ने में ध्यान नहीं दे रहे हैं, नहीं वह कही हुई बातों को अमल कर रहे हैं ।आप लोग तो देखते ही हैं बाकी शिक्षक साथी उनको कैसे दंडित करते हैं ? मेरी तो कोई समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं इनके साथ ? । तुम सभी जानते हो औरों की तरह मैं नहीं हूं, विद्यार्थियों ने कहा हां सर जी।  पर इस समस्या का कोई तो हल होगा ? आप सोचिए सर जी, हमें पूरी उम्मीद है आप इस समस्या का समाधान ढूंढ निकालेंगे । विद्यार्थियों की इस भरोसे  ने उसके मन में नई जान फूंक दी वह एकाग्र होकर सोचने लगा । नौवीं कक्षा में जाकर फिर संजय ने कहा कि मैं अब पढ़ाने नहीं आऊंगा आप को पढ़ाने में मैं असफल रहा इसके लिए क्षमा चाहता हूं। आप सभी से आशा करता हूं आप मुझे माफ कर देंगे । यह कह कर कक्षा से बाहर निकल आया और फिर कक्षा सातवीं के विद्यार्थियों से उसके चहेते तीन विद्यार्थियों को जिसमें लक्ष्मी, किरण व आशा से कहा कि मैं तुम्हारे बड़े भाई- बहन को  कक्षा 9 वीं में और स्कूल नहीं आऊंगा कह  कर आया हूं । आप लोग मेरा सहयोग करोगे क्या ? संजय ने उन तीनों से  कहा । व बोले आप बोलिए तो सही सर जी । संजय तीनों के लगन से पढ़ाई के लिए बहुत प्रभावित था तथा वे तीनों उसके सबसे विश्वासपात्र थे। संजय ने उनको कहा आप लोग गांव में यह खबर फैला देना कि संजय सर जी अब पढ़ाने और नहीं आएंगे।  हमारे विद्यालय नहीं आएंगे क्योंकि कक्षा 9वी में पढ़ने वाले उनके बातों को नहीं मान रहे हैं।  तीनों को संजय ने कहा  आप लोग चिंता मत करना , नहीं यह किसी को बताना कि मैं सप्ताह बाद आऊंगा। उन्होंने ठीक है सर जी आपने जैसा कहा है उसे हम गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे । संजय एक सप्ताह तक विद्यालय नहीं गया। शिक्षक स्टाफ के फोन आने पर उन्हें पढ़ाना छोड़ने की बात कह दिया जिस पर वह सभी हतप्रभ रह गए। वह एक सप्ताह से दाढ़ी नहीं बनाया था जो काफी बढ़ गए थे , ऐसे ही स्थिति में संजय एक सप्ताह बाद विद्यालय गया तो सभी शिक्षक एवं विद्यार्थियों में खुशी की लहर फैल गई । परन्तु संजय की स्थिति देख वे सोच में भी पड़ गए कि क्या हुआ आखिर ? 

नौवीं कक्षा में प्रथम कालखंड में विज्ञान  तथा द्वितीय कालखंड में कक्षा सातवीं में विज्ञान पढ़ाता था । प्रथम कालखंड में जैसे ही वह कक्षा 9वी में प्रवेश किया कि सभी खड़े होकर 

गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरुदेव महेश्वर
गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नमः 

प्रार्थना करने लगे । प्रार्थना के बाद इशारे से बैठने को संजय ने कहा, सभी बैठ गए, अभी तक संजय की नजरें नीची ही रही।  वह ऐसे  ही नजरों  को नीचे किए हुए कहा मुझे खेद है कि मैं आप को पढ़ाने समझाने में असमर्थ रहा । परंतु आपकी गलतियों का परिणाम पूरा विद्यालय एवं अन्य विद्यार्थियों को भी भुगतना पड़े यह उचित नहीं लगता मुझे। इसलिए मैंने विद्यालय आकर पढ़ाने का निर्णय लिया है मैं अन्य विद्यार्थियों एवं विद्यालय की समिति के साथ अन्याय नहीं कर सकता।  इसका मुझे कोई अधिकार नहीं है कि मैं बीच रास्ते में इस वक्त विद्यालय छोड़ यहां से चला जाऊं।  यह एक बड़ी समस्या है कि आप मेरे साथ पढ़ना नहीं चाहते । इसका मलाल मुझे हमेशा रहेगा मैं समिति से कहूंगा कि उक्त कालखंड किसी और शिक्षक साथी को पढ़ाने के लिए वह जिम्मेदारी सौंपे जिससे आप लाभान्वित होंगे। पर मैं आपको आज एक कहानी आखरी बार सुनना चाहता हूं अगर आप सुनने को राजी हो तो, संजय ने उन विद्यार्थियों को कहा । उन्होंने हां सर जी , सुनाइए सर जी हम सभी सुनेंगे बोले । उसने अपनी निगाहें उठाकर उनको देखा और कहा मैंने अपने जीवन में आज तक इतना दयावान व्यक्ति किसी को नहीं देखा है जितना उसको देखा पाया या समझा है । आपने देखा है वह चित्र जिसमें ईसा मसीह को क्रूस में चढ़ाते हैं ? ऐसे क्रास जो रहता है, इशारों में दिखाते हुए बताया । सभी ने  देखा है फोटो में सर जी कहे । हां वही दृश्य को आपने देखा है ध्यान से जिसमें उनके हाथ व पैरों में कील ठोके गए हैं । विद्यार्थियों को संजय ने कहा आपने कभी सोचा है कि ईसा मसीह  ने क्या किया उनके साथ ? उनको कीतना दर्द हुआ होगा सोचो ? विद्यार्थी जी सर बहुत दर्द हुआ होगा, खून भी बाहर निकले रहे होंगे । सोचो हमें कोई एक थप्पड़ मार दे तो हम उसे दो थप्पड़ या एक थप्पड़ तो मार ही देंगे है ना , विद्यार्थी जी सर बोले। संजय- जानते हो ईसा मसीह ने उन कील ठोकने वालों के साथ क्या किया ? विद्यार्थी नहीं जानते सर, पर इतने लोग पकड़ के कील ठोक दिए , उनके हाथ पांव में तो कर भी क्या सके होंगे सर जी एक विद्यार्थी ने कहा ।  संजय – नहीं नहीं उन्होंने जो किया वह अद्भुत है । जब कील ठोका जा  रहा था तो जो कुछ उन्होंने किया वह आपको बताता हूं।  विद्यार्थी बताइए सर जी हमें नहीं मालूम। संजय- इसीलिए तो यह कहानी आप सबको सुना रहा हूं । इस जगत में इतना दयावान व्यक्ति मैंने नहीं देखा। जानना चाहते हो क्या किया उन्होंने ?  हां सर विद्यार्थी बोले एक स्वर में बड़े ध्यान से । तो फिर सुनो जब उनके हाथ पांव में कील ठोके जा रहे थे तो ईशा मसीह ने उन कील ठोकने वालों के लिए प्रार्थना की की हे ईश्वर इन कील ठोकने वालों की कोई गलती नही है । ईश्वर से कहा हे ईश्वर इनको माफ कर देना ये लोग नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं ? इसमें इनकी कोई गलती नहीं है । सोचो ऐसे थे वे । सोचो हम ऐसा कर सकते हैं क्या ? वह उनके लिए प्रार्थना कर रहे हैं जो उनको यातना दे रहे थे । विद्यार्थियों ने कहा हां सर सच में बहुत ही धीरज धरने वाला व दयावान ही ऐसा कर सकता है । मानवता की पराकाष्ठा है यह घटना, पर कील ठोकने वालों ने ठोक दिया उनके हाथ व पैर में।  जी सर विद्यार्थी ने कहते हुए सभी सोच में पड़ गए तभी संजय ने कहा एक बात बोलूं आप सभी को । बोलिए सर जी हां बिल्कुल कहिए सर जी सब ने कहा । तब संजय बोला वह कील ठोकने वाले की तरह आप लोग भी हो जिन्हें नहीं मालूम कि क्या कर रहे हैं ?  मैं भी ईसा मसीह की भांति आप सबके लिए अब बस दुआएं मांग सकता हूं कि ईश्वर इन्हें  सद्बुद्धि देना ये लोग नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं ? इन सब को माफ कर देना कहते हुए उसके आंखों में आंसू आ गए जिसे वह पीछे होकर पोंछा , उसका गला भर आया वह तुरंत कमरे से बाहर निकल आया। 

वह रोजाना कक्षा में आता सभी विद्यार्थी प्रार्थना करते, संजय हाथ ऊपर कर उधर देख कहता है ईश्वर इन्हें माफ कर देना ये लोग नहीं जानते कि  क्या कर रहे हैं ? । इन्हें सद्बुद्धि देना । यह सिलसिला एक हफ्ता तक चलता रहा, एक दिन जैसे ही प्रार्थना के बाद संजय वही कथन बोलने वाला ही था कि सभी विद्यार्थियों ने एक साथ सर जी प्लीज – प्लीज इस कथन को मत कहिए, मत दोहराए हम सब समझ गए सर जी । आज से आप जो कहेंगे हम वही करेंगे । यह दृश्य देखकर संजय भी कौतूहल से भर गया उसने देखा सबकी आंखों में आंसू है वह सभी उदास हैं। संजय- मन में वास्तविकता क्या है ? क्यों यह कथन मैं ना कहूं ? उसने इन विद्यार्थियों को सिर ऊंचा करके देखा वे बड़ी कातर नजरों से संजय की ओर देखते हुए। करुण स्वर में सभी कहने लगे सर जी यह वाक्य हमें सोने नहीं देता। कुछ भी खाने का मन नहीं करता । जैसे ही हम खाने को होते हैं यह कथन हमारे जेहन में घूमता है । हमारे दिमाग में यह कथन गूंजता रहता है सर जी । प्लीज – प्लीज यह कथन मत कहिएगा हम सब अपनी गलती समझ चुके हैं यह सब सुनकर संजय को बहुत ही आश्चर्य हुआ उसने कभी सोचा ही नहीं था कि परिणाम ऐसा होगा । पर उसे विश्वास था कि सभी समझ जाएंगे अपनी भूल को । इस घटना के बाद सभी विद्यार्थियों के मन, जीवन में वैचारिक क्रांति आई। वे बड़े एकाग्रता के साथ विनीत होकर सबको समझने लगे जो बेहतर परिणाम के साथ फलदाई हुआ । सभी अपने स्तर से ऊपर उठ पाए और उनका नजरिया सकारात्मक हो चला। उस घटना के बाद सकारात्मक नजरिए से उनके पढ़ाई करने से पूरा समाज परिवार गांव लाभान्वित हुआ जो एक सार्थक मेहनत का परिणाम था।

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