Dhuaan Bankar rah gaye

 

 

जलके रोशन हो न पाये

धुँआ ही बनकर रह गए

 

जलाया हमें क्यों ? इस कदर

औरों  के  भी  दम  घुट  गए ।

 

मोम के दरिया थे पहले हम कभी

पत्थरों  में  हैं  अब  ढल गये ।

 

खुदको समझना है इतना मुश्किल

इतने  रूप  जो  बदल   गए। 

 

प्रेम की आग में जब जले हम

दिया ना तुमनें हमें कोई साँचा ।

 

शिला बन गए शीतल  होके अब

बोले फिर कैसे ? यह बन्धन कांचा ।

 

कोई मूरत बनाये, कोई घर सजाये

परवाह नही खुदकी हमें कुछ हो जाये

 

शिकायतें कितनी है लोगों को हमसे 

सोचतें उनको हम सच कैसे बतायें ?

 

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