Saccha Insaan | सच्चा इंसान

man walking beside graffiti wall

रायगढ़ शहर से करीब 11 – 12 कि. मी. दूर एक सब्जी वाला लड़का करीब 18 -19 वर्ष का नवयुवक है, परसरामपुर के पास सड़क में फिसल कर गिर गया था । वह गाड़ी को नहीं उठा पा रहा था, ना ही अपने लादे सामानों को। सामान में वह दो बोरी बरबट्टी लादे बेचने के लिए बाजार लेकर जा रहा था । उसी समय शौर्य वापस हो रहा था कॉलेज से। वह कॉलेज में सहायक प्राध्यापक है। शौर्य की सासू मां ने उसे जल्दी आने के लिए फोन की थी । जुलाई का महीना था ,मौसम बारिश का था, बरसात भी  हल्की- हल्की हो रही थी । वह जल्दी घर जाने के लिए निकल पड़ा था, रास्ते में वह रफ्तार में था। दूर से उसने देखा कि कोई गिरा पड़ा है सड़क किनारे, पास आने पर मालूम हुआ कि वह युवा है। शौर्य उस युवक के पास आकर उसकी दशा को देखते हुए  गाड़ी को धीमा कर लिया इस उम्मीद से कि वह सहायता मांगे और मैं ठहर कर उसकी मदद कर दूं। पर ऐसा नहीं हुआ नवयुवक देखने में एक ग्रामीण प्रतीत हो रहा  था, जो  आत्मनिर्भरता के भाव से लबरेज़ था । कुछ देर बाद वह अपने कार्य यकीनन कर लेता इसीलिए उसने मदद नहीं मांगी । सिर्फ देखा शौर्य की ओर उस युवक ने, क्योंकि शौर्य ने अपनी चारपहिया वाहन धीमा जो कर लिया था । शौर्य ने सोचा मदद हेतु रुक जाऊं क्या ?   फिर सोच बदली और कहा कोई न कोई तो मदद हेतु  अवश्य आएगा, इतने में वह आगे निकल आया था। फिर अंदर से आवाज आई कि कोई ना कोई तो मदद के लिए आएगा तो उस कोई में मैं क्यों शामिल नहीं हूं? फिर क्या? उसने गाड़ी की दिशा वापस कर उस नवयुवक के पास जाकर गाड़ी रोक दिया और उसकी सहायता करने लगा। गाड़ी को उठाकर मेन स्टैंड में रखा, फिर उसके ऊपर दोनों बोरियां लादकर बांधने में वह मदद करते हुए बोला और कुछ लगेगा तभी नवयुवक ने कहा मैं गाड़ी में बैठ रहा हूं आप पीछे से धक्का दे दो। शौर्य ने ठीक है कहकर पीछे जाकर धक्का लगाया। वह नवयुवक गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा साथ में शौर्य भी।  

वह युवक ग्रामीण परिवेश का था। अधिकतर गांव के लोग अंतर्मुखी व्यक्तित्व के होते हैं वैसे ही प्रकृति का वह भी था। वह शौर्य को शब्दों  के बजाय आंखों से ही धन्यवाद की दृष्टि से देखा और शौर्य उस दृष्टि को पाकर अपने अंतस की आवाज को सुनकर जो किया था उससे उसको आनंद आ रहा था। इस आपाधापी भागमभाग भरी जीवन में इस तरह के  कम देखने को मिलते हैं।  हम भी अक्सर कहीं भी अपने अंदर की आवाज को सदा सुनते रहे और उसके अनुसार कार्य कर आनंदित होते रहे यही जीवन है।  तथा उसका मर्म भी।  कुछ देर बाद पानी तेज गिरने लगा तभी शौर्य एक जगह पर रुक कर पानी की बौछार को देखने लगा और समझा जीवन पानी के बूंदों की भांति ही है।  इस छोटे से प्रयास से उसका अंतस भी खिल उठा है जिससे उसको सच्चा इंसान बनने की अनुभूति हो रही है।

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