Khudki khoj | खुद की ख़ोज

कभी खुद की गहराइयों में उतरे 

डर ने कभी उतरने ही नहीं दिया 

अंधेरों में परछाइयां नाचने लगी 

बैठ गए डर के हाथ पाव सीकोड 

मुड़कर देखो तो आपके ही भूत हैं

आखिर कब उत्तरोगे अपने अंदर ?

एक नई जहां इंतजार में है वहां 

सारा खजाना समंदर के सीने में 

दफन है हीरा कोयले की खान में 

हिमालय बना, हलचल से है खड़ा 

होते गया पल- पल  सबसे बड़ा 

उतरने में डर सबको लगता है…

भारी चीजें तो अंदर भरी पड़ी है 

उथला -उथला में क्या मिलेगा ?

गहराई में जाओ खुद के खुद से

दुनिया चलेगा यारा जो मिलेगा 

बाहर तलाशा मंजिलों को खूब 

पाया क्या तूने कुल मिलाकर ?

खुद के अंदर खोजना बाकी है 

विश्वास का दिया जलाके उतरजा 

हुआ जो सब कुछ भुला कर खुदको 

पा गए तो निष्काम कर्म की बात होगी 

नहीं पाए तो यादों के दिन व रात होगी 

दुनिया कहेगी तुमको मनोरोगी, वियोगी

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