Kirdaar | किरदार

woman looking through window blinds

घर जाने की इच्छा मन में कुलांचे भरने लगे थे । कंप्यूटर से देखने पर ट्रेन गांव के लिए 3:15 PM दोपहर में थी । सही समय पर महेश ने जल्दी से सीमा को खाना बनाने एवं सामान बांधने के लिए कहा । उस दिन उसका साला भी इटारसी से अमरकंटक एक्सप्रेस मे  सुबह 7:30 AM बजे पहुंचा था। सुबह अचानक सीमा ने उसे जगाया जाओ ट्रेन पहुंच चुकी है संतोष फोन किया था, अपने मोबाइल का बैटरी डीस है बता रहा था । जल्दी जाइए महेश ऊंघता हुआ उठा और मुंह धोया, हल्का ब्रश किया ताकि मुंह से बास ना आए और कपड़ा पहन कर चल दिया, गृह मंत्री का आदेश जो था। रेलवे स्टेशन महेश जहां रहता था उसके रूम से एक किलोमीटर की दूरी पर है, ज्यादा दूर नहीं है। उस दिन सुबह हल्का -हल्का  पानी भी गिर रहा था । संतोष ने फिर फोन किया की वह स्टेशन पहुंच गया है वह उत्तर कर विपरीत दिशा में चल दिया था, दमदम से तभी महेश ने उसे बताया तू जिधर गया है उससे जस्ट उल्टा आना है । सन्तोष आ रहा था कि महेश पहुंच गया। सन्तोष जल्दी गाड़ी में बैठा उसे लेकर वह घर आ गया । दरवाजा खोलने पर विवेक की रोने की आवाज सुनाई पड़ी, वह अपने मामा को रेलवे स्टेशन लेने जाने के लिए उठ बैठा था । उसके मम्मी के कहने पर हाथ में ब्रश भी पकड़ा था लेकिन उसकी उम्मीदों में पानी फिरते अपने मामा को पास देख रोया पर कुछ समय बाद फिर चुप होकर उसके साथ खेलने लगा।

 रेलवे स्टेशन जाना विवेक को बहुत अच्छा लगता है । महेश आकर पुनः ब्रश किया और फ्रेश होकर नहा लिया उसके बाद  गरमा गरम चाय की प्याली हाथों में सीमा ने थमाई वे चुस्की से मजा ले कर बातें करने लगे। 

अचानक इटारसी कैसे गया था ?  महेश ने संतोष से पूछा । संतोष  ने बताया कंपनी का एक काम था, ट्रांसफार्मर का आयल चेकिंग के लिए गया हुआ था । तभी सीमा ने महेश को आंखों से इशारा किया महेश उसके पास गया वह बोली ब्रेड नहीं है जाओ लेकर आ जाओ मैं ब्रेड पकोड़ा बना दूंगी। महेश सामान लेने दुकान चला गया सामान लाने के बाद फिर बातें करने लगे इतने में सीमा ने फिर महेश की ओर इशारा किया , महेश थोड़ा रुष्ट होते हुए आया फिर सीमा बोली बेशन कहां है । एक बार फिर जाओ और ले आओ प्लीज तभी महेश ने कहा एक साथ बोलना चाहिए बार-बार बैल की तरह जोत रहे हो ,तभी सीमा बोली मेरे को मालूम थोड़ी था। मुझे लगा है इसीलिए नहीं बोली ठीक है ठीक है कह कर फिर महेश सामान लेने चला गया । महेश को आटे दाल के भाव अब मालूम हो रहे थे। महीना के आखिरी वक्त में बजट के हिसाब से चलना दिन गिनना पड़ जाता है।  1 तारीख कब आए इसका इंतजार मन को बेचैन करता है । अकाउंट में पैसे आते हैं थोड़ी चेन मिलती है । घर का किराया, घर को पैसे भेजना ,बिजली बिल व राशन आदि में फिर पैसे फ़ुर्र हो जाते हैं। बचत का तो नामोनिशान तक नहीं है । ऊपर से यह फैशनेबल जीवन- शैली। जिंदगी बस गिनती बन गई है , वही महीना वेतन व महीनों के आखिरी दिनों में तंग हाल ऊपर से मेहमान उस वक्त आए तो सिर मुंडाते ही ओले पड़ने जैसी हालत हो जाती है।

यह सारे ख्याल महेश के मानसिक पटल पर चल रहे थे। 

महेश ऑफिस गया और घर जा रहा हूं ट्रेन 3:15 दोपहर में है कह कर जल्दी आ गया । आपके ऑफिस में अगर स्टाफिंग सही है , सब एक दूसरे को समझते हैं,  सहयोग करते हैं तो फिर काम में मजा ही मजा है । अन्यथा समय की घड़ी टिक- टिक ,टिक- टिक करते टिक जाती है, नहीं गुजरती है । अगले घंटों में टिक जाती है । पूछताछ काउंटर में महेश ने पूछा तो वह ट्रेन 1:30 घंटे लेट बताया गया । महेश ने  तीन टिकट ले ली  रायगढ़ के लिए फिर घर गया और खाना खाकर थोड़ा इंतजार किया फिर फोन से पूछा ट्रेन का समय 2 घंटे लेट हो गया था । जल्दी घर आने की उत्सुकता ऊपर से यह ट्रेन की लेटलतीफी सचमुच इंतजार बहुत मुश्किल होता है सारा ध्यान  उस ओर लग जाता है जिसका इंतजार होता है । समय पर स्टेशन पहुंचे स्टेशन पर ही महेश के ऑफिस के स्टाफ के लोग मिले । कुछ लोग जो बाहर से यहां काम करने आते हैं वह दूसरे शहरों में रहते हैं। सीमा एवं बच्चे से उनका परिचय महेश ने कराया एवं कुछ बातें की साले साहब को भी बताया उनकी खासियत तथा साले के बारे में उनको। महेश ने संतोष को कहा कभी-कभी लगता है दुनिया एक सपना है और सपनों के रूप में हमें किरदार बनाकर वह खेल रहा है शतरंज के विषाद की तरह । किरदार बनाकर वह है मिलना मिलाना विभिन्न किरदारों भूमिकाओं को निभाना एवं उसे समझना यही आनंद है पर भावनाएं हम पर हावी हो जाती हैं और माया के वशीभूत हम उसे यथार्थ मान लेते हैं । अभिनेता तभी सफल होता है या सफलता को प्राप्त करता है जब वह अभिनय में पूरी तरह डूब कर उस भूमिका को यथार्थ बना देता है । पर वह यह जानता है कि वह अभिनय कर रहा है गोया कि एक पल के लिए वह भी खुद को भूल कर उस अभिनय के रूप में जीता है । यह जिंदगी भी वैसी ही है हम कई फिल्में साइन कर अभिनय कर रहे हैं और उसका निर्देशक कोई और है अगर अभिनय करते हुए आगे बढ़ते गए उसके भावनाओं के भंवर में ना फंस कर  तो यह निष्काम कर्म हो जाएगा। अच्छाई बुराई नदी के दो छोर हैं ,तट की नदी की बंदीशे से हैं। उसका आधार है। ट्रेन अभी लेट था सब बैठे बैठे बोर हो रहे थे। तभी महेश ने सभी को एक यथार्थ घटना का वाकया बताना शुरू किया जो वह एक किताब में ओशो की मैं मृत्यु सिखाता हूँ में पढ़ी थी। सभी ध्यान से सुनने लगे।

एक बार एक नाटक को देखने के लिए मुख्य अतिथि के रुप में डॉक्टर ईश्वर चंद विद्यासागर को बुलाया गया था उस नाटक में एक सीन था एक महिला का बलात्कार का उस नाटक को देखते हुए सागर जी आगे बैठे हुए थे वह दृश्य आया नाटक चल रहा था बलात्कार के समय ईश्वर चंद विद्यासागर जी अचानक उस मंच के बीच में कूदकर उस अभिनेता को जो बलात्कारी के किरदार में था दे मारा जोरदार अपने चप्पल उठाकर लगातार। सब लोग हैरान हो गए वह अभिनेता मैं धन्य हो गया, मेरा पुरस्कार मुझे मिल गया मिल गया चिल्लाने लगा । सभी दर्शक यह दृश्य देखकर हतप्रभ थे सागर जी उस नाटक में इतने तल्लीन हो गए थे कि उसे यथार्थ समझ बैठे उस अभिनेता का अभिनय भी इतना जीवंत था की सागर जी के होश उड़ा दिए। बाद में सागर जी खुद असमंजस में पड़ गए  जब होश में आकर देखा कि  मैं मंच में कहां आ गया था ,कूद बैठा था । उन्होंने अभिनेता से माफी मांगी पर अभिनेता ने कहा यह मेरा अभिनय का पुरस्कार है श्रीमान आप ऐसे ना कहें । निश्चित रूप से जो व्यक्ति जैसा सोचता है वह उसी तरह से कार्य व्यवहार भी करता है । ईश्वर चंद्र विद्यासागर के कार्य अनुकरणीय है हमारे लिए । ऐसा महेश ने सभी को कहा ।            

ट्रेन आ गई चलो चलो जल्दी चलो कहते हुए सभी झट से चढ़ गए पहले ही सीट पर एक सरदार जी दिखाई दिए आगे देखा दो ,तीन  सीट सब में पूरे बैठे हुए थे फिर वापस पीछे आकर महेश सरदार जी के पास बैठ गया और बाकी सभी भी बैठ गए उन्होंने एक तरफ बैठ कर आइए जी कहकर मुस्कुराते हुए मानवता दिखाई। शुरू में तो वह थोड़ा शक्त थे। पर गांव में बचपन से सरदारों के बीच पले बढ़े हैं गुरुद्वारा के प्रसाद खाकर मजे किए हैं । जीवन में वाहेगुरु सतनाम , सत श्री अकाल की गूंज सुनाई देने लगी तब मन से आत्मा भी खुलने लगा एक और लड़का भी सरदार जी के पास बगल में बैठ गया था थ्री सीटर सीट थी उसमें सरदार जी वह  लड़का बैठे थे उसके सामने महेश, संतोष व सीमा एवं उसकी गोद में विवेक बैठा था । दूसरे किनारे पर एक व्यक्ति लेटा हुआ  खिड़की की हवा खा रहा था । आनंद लेते हुए निर्वेद रूप से लेटा रहा अपनी बैग का तकिया बना कर। सरदार जी ने बताया कि मैं अमृतसर से आ रहा हूं मैं छत्तीसगढ़ का रहने वाला हूं लेकिन बिजनेस में मेरा हानि हो गया अब मैं अमेरिका जाऊंगा मेरे चाचा जी के साथ मैं आठवीं पास हूं जी ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं अमेरिका में मुझे ₹50000 के बराबर डॉलर में वेतन मिलेगा जी हम बोले अच्छा है । उन्होंने कहा अब काम तो कुछ भी हो काम है जी करना तो पड़ेगा वरना यह जिंदगी कैसे चलेगी । आप क्या करते हो जी ? सरदार जी ने महेश से पूछा महेश ने कहा सेल टैक्स इंस्पेक्टर हूं जी ,अच्छा है जी का कह के खुशी जाहिर की। उन्होंने अपनी आपबीती बताई कि कैसे उनकी पत्नी ने उन्हें फर्जी का दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराया था और उनकी पत्नी की भाभी ने सरदार जी के फेवर में गवाही देकर उसको सच्चाई बयां की । उन्होंने महेश से  पूछा क्या मुझे उनके ऊपर पुनः मानहानि का केस करना चाहिए ? महेश ने कहा देखिए सरदार जी मुझे लगता है आप की माफी से बड़ी उसके लिए सजा ना होगी क्योंकि सत्य तो सत्य है वह एक ना एक दिन आदमी को स्वीकार करनी पड़ती है।  मेरे विचार से बाकी राय आपकी महेश ने कहा ।सरदार जी ने  कहा मैं भी यही सोच रहा हूं जी, उसने मेरे साथ बुरा किया क्योंकि वह बुरा सोचती है । पर हम बुरा नहीं करेंगे ना चाहेंगे उसके लिए, बाकी उससे तलाक ले लिए हैं जी। 

अभी मैं रायपुर में एक लड़की से मिलने आया था। लड़की से मिलकर कुछ दिन पहले यहां उनको समझा उससे सारी बातें बताई उसके साथ शादी करना चाहता हूं वह भी राजी हो गई हैं। उनका भी तलाक हो गया है । उनका पति उन्हें बहुत मारता था इसलिए वे उनके खिलाफ केस कर तलाक ले ली हैं। उनकी बड़ी प्यारी एक 3 साल की बच्ची है । अचानक सरदार जीने महेश से पूछा आपका बच्चा कितने साल का है। महेश ने कहा जी 3 साल का है यह भूलता है कि नहीं, महेश ने कहा नहीं भूलता है इसका याददाश्त तेज है। तब वह थोड़े हताश दिखे। महेश ने पूछा क्यों ? सरदार जीने कहा लड़की मुझे अपना पाएगी कि नहीं, वह पहले वाले पापा को भूल पाएगी कि नहीं। महेश ने कहा नहीं जी ऐसी बात नहीं है वह भूल जाएगी बच्चों को लंबा समय बीतने के बाद याद नहीं रहता अगर उस चीज को वह ना देखें तो उनको तो बस प्यार चाहिए वह आपको अपना लेगी जी आसानी से ऐसा महेश ने सरदार जी से कहा । सरदार जी ने कहा कि उन्होंने सही चीज के लिए अपने पति के खिलाफ केस रिपोर्ट दर्ज कराई जबकि मेरी पत्नी झूठे आरोप से मेरे ऊपर केस दर्ज किया मैं 1 साल तक जेल के अंदर रहा जी।  सरदार जी ने कहा हम दोनों की जिंदगी में कितनी समानताएं हैं जी । महेश ने कहा आप 

खुशकिस्मत हैं सरदार जी ,दोनों जिंदगी को समझ चुके हैं आपको एक दूसरे को समझने में बहुत आसानी होगी । तभी उन्होंने कहा वह एक स्कूल टीचर है यह तो और अच्छी बात है महेश ने कहा । एक शिक्षिका के रूप में आपको खुशियां मिलेंगी सच्चा के साथ अच्छा ही होता है देर सवेर आज नहीं तो कल, इसलिए इंसान के साथ गलत हो रहा हो तो उसके चलते खुद को गलत नहीं बनाना चाहिए क्योंकि गलत का इलाज अच्छाई है, झूठ का इलाज सच्चाई है।

सरदार जी ने सीमा से बात करते हुए कहा बहन जी आप कभी अपने पति पर शक नहीं करना ना भाई साहब आप भी बहन जी पर क्योंकि यह शक की जो दीमक है ना वह रिश्तो की बुनियाद को खोखला बना देता है। तभी महेश ने सरदार जी को देखा व एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए और कहा जी आप सही कह रहे हैं । तभी खिड़की के पास लेते हुए व्यक्ति ने दूसरी तरफ करवट ली और हमारे तरफ पीछे कर कर लिया। संतोष अभी कुंवारा लड़का था उसे भी सरदार जी ने एक लेक्चर दिया वह समझते समझते थक गया। कुछ देर बाद एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी संतोष उतर गया ब्रेक लेने के लिए अचानक सरदार जी ने ईसा मसीह के बारे में बात करना शुरू कर दिया । महेश को एक छोटी सी पुस्तक दी महेश ने उसे 10 मिनट में पढ़ लिया महेश के पढ़ते समय सरदार जी सीमा को ईसा मसीह के बारे में बताने लगे उसे भी एक प्रार्थना की छोटी पुस्तिका दी बहन इसे आप रोज खाते समय पढियेगा  ऐसा कहा । तभी महेश ने सरदार जी को कहा  मध्यमवर्गीय परिवारों की जिंदगी बड़ी सामंजस्यता पर आधारित होती है सामंजस्य में तालमेल बिठाते-बिठाते व्यक्ति किन्कर्तव्यविमुढ बन जाता है । कभी-कभी यही सामंजस्य की लहरें सामाजिक समंदर में अपने ही पानी के आधारों के विरुद्ध तरंग गति करते हुए आधार एवं ऊंचाई को प्राप्त कर आगे बढ़ती है । अपने अस्तित्व के लिए व्यक्ति सीमांत मानव बनते हैं कभी तो कभी खुद से अलगाव महसूस करते हैं। वर्गीय गतिशीलता एवं जीवन शैली की मेंटेनेंस में आदमी खुद को भूलने लग जाता है प्रतिष्ठा बाद के चक्कर में आदमी दिखावे की संस्कृति को पानी से खींचने लगता है, जिसका फल बड़ा कसैला होता है। सरदार जी ने कहा एकदम सही है जी आपकी बातें, ट्रेन जांजगीर- चाँपा स्टेशन आगयी सरदार जी ने महेश  व सीमा को नमस्कार किया वहीं महेश ने सरदार जी को फिर मिलेंगे दुनिया गोल है जी कहते हुए नमस्ते किया वे स्टेशन उतर गए ।

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