Kanha se kanha pahuchaya

 

वक्त ने मुझको कहां से कहां पहुंचाया ?

 

सोचा नहीं था उसने ऐसे आजमाया 

 

मेरे समेटने के उसने सारे इंतजाम कर लिए थे 

 

बीजों की तरह मैं खुदको बिखेरता चला आया 

 

वक्त ने मुझे कहां से ……..

 

लड़खड़ाता रहा मैं सुनेपन में हरदम 

 

मुश्क़िलों  ने ही मुझे चलना सिखाया 

 

परवाह नहीं कि कभी मैंने हालातों की 

 

तकलीफों में भी मैंने खुलकर मुस्कुराया

 

वक्त ने मुझको कहां …………

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