Teaching life

 

जिंदगी का ऐसा मुकाम जहां से कुछ बनना है, कुछ नव निर्माण करना है। मानवता के मंदिर का मैं एक पुजारी बना जहां ईश्वर के रूप में बालक मुझसे बात करते हैं । उनकी निष्काम सेवा ही मेरे राष्ट्र सेवा, मेरा धर्म एवं मानवता के साथ ईश्वर की पूजा होगी। उनके अंदर जो प्राकृतिक गुण हैं उनको प्रस्फुटित करना ही मेरा सर्व प्रमुख लक्ष्य है । अंबिकापुर डाइट में हमारा 30 दिवसीय प्रशिक्षण हुआ जो जीवन का एक आधार स्तंभ साबित हुआ। यहां मैंने बिंदास जीने की कला सीखि। जीते रहने का सबसे बड़ा गुण सीखा, उसके लिए कैसे कर्म करना है यह जाना ।वास्तव में निर्भीकता से ही किसी कार्य को करने से ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है क्योंकि सत्य में डर की कोई जगह नहीं होती । वह अटल अचल एवं शाश्वत है । नदियों का समंदर में मिलना ही उसकी सार्थकता है । मैंने स्कूल ज्वाइन किया उस दिन अपने जीवन में एक मजबूत इरादे के साथ आगे बढ़ना सीखा एवं मजबूत इरादों में कितनी शक्ति होती है, उस शक्ति का ऐसा परीक्षण मानवता के लिए किया जो मैंने आज तक कभी नहीं किया था । 25 किलोमीटर की दूरी अकेले पैदल चलकर 4 घंटे में तय कर मंजिल फतेह करते हुए अपना प्रथम कार्यस्थल पूर्व माध्यमिक शाला चिकनी पहुंचा । काफी थका तन से, मन में एक मजा, एक जोश एवं पूरा होश लिए मैं था । उस वक्त ऐसा लग रहा था मानो मैं मानवता के लिए अपनी शक्ति की प्रथम उड़ान में सफल रहा ।

 

ज्वाइन करने में कर्मा त्यौहार के दिन गया जो इस अंचल की प्रमुख आंचलिक त्यौहार है । कर्म करने की प्रेरणा जीवन को देती है यह पर्व और मेरी इस दिन अपने जीवन के कर्म को शुभारंभ की संयोग की सार्थकता को सिद्ध करूंगा तभी वह यादगार होगी यह मैंने मन में दृढ़ निश्चय किया । ज्वाइन मैं दयाराम सिंह के सहयोग से किया एवं उनके द्वारा बस स्टैंड तक पहुंचाने के बाद मैं घर आया। घर से जाने के बाद मैंने बच्चों से मुलाकात किया । विद्यालय में अपना प्रथम कदम रखा तो मानो एक ऐसीअनुभूति हुई जो मेरे अंदर से मुझे शक्ति दे रही थी । मेरे सामने कुछ आंखें थी जिनमें जीवन प्राकृतिक पर स्वयं से कुछ अनजान थी। उनको देखने के बाद मुझे अपने ईश्वर का याद आया जो उनके अंदर में रहकर यहां बैठा मुझे देख रहा है और मैं उनको देख रहा हूं । मुझे उस स्कूल के दीवार में लिखा एक वाक्य हमेशा याद आता रहा “आदमी वह नहीं जिसको हालात बदल दे आदमी वह है जो हालात बदल दे ” । सचमुच इस वाक्य ने मुझे हालात को बदल देने की प्रेरणा देती रही। 

 

प्रेम ही ईश्वर का दूसरा रूप है प्रेम से संपूर्ण संसार को जीता जा सकता है इसको मैंने आधार बनाया मुझे यहां स्टाफ का पूरा सहयोग मिल रहा है सर श्री दयाराम सिंह मरावी , श्री पूरन लाल रजवाड़े , श्री सरजू प्रसाद सिंह एवं मेरे सहपाठी शिक्षक श्री शंकर सिंह नेताम साथ ही दूसरे प्राथमिक स्कूल के शिक्षक श्री लव कुमार सिंह एवं श्री मेहरबान सिंह वह श्री मुन्ना सिंह श्री चंद्र विजय  सभी स्टाफ चिकनी में है। जिनका पूरा सहयोग मुझे प्राप्त होता रहा । मैं अपना अधिकांश समय स्कूल के विद्यार्थियों एवं इस क्षेत्र के समझ बढ़ाने में लगाता रहा जिसका सार्थक परिणाम मुझे प्राप्त होने लगा।  मेरा हृदय उस समय प्रेम से भर गया एवं मेरे आंखों में प्रेम के आंसू आ गए जब मेरे एक शिष्य हीरामणि ने प्रेम से खरीद कर लाए अपने अमरुद के फल मुझे दिए उस समय मैं प्रेम को स्वीकार किया लेकिन मेरे हृदय में उसकी प्रेम पूर्वक भेंट को देखकर ऐसा लगा जैसे मुझे वे कितना प्रेम करते हैं।  मैं उनको कभी डांटता , कभी मारता तो कभी प्यार भी करता। क्या करूं ? मैं उस मां की तरह अपनी भूमिका निभा रहा हूं जो अपने संतति को हमेशा अच्छा बनाना चाहती है । उसके लिए वह विभिन्न भूमिकाओं में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निभाती है । 

 

मैंने सोचा था कि यहां हालात बहुत अच्छा है सब प्यार करते हैं पर मैं नहीं जानता था कि प्यार एक धोखा है ।  जो नहीं है वह है और जो है वह नहीं है लेकिन कुछ तो है वाली बात यहां की स्थिति है । मैं एक शिक्षक हूं मेरा यही विचार था एवं है अभी भी कि मैं हकीकत को यहां जानू, पहचानो और उसके बाद मैं कुछ करूं ।  नियति की खेल भी एक अजब निराली है मेरी दोस्ती भी एक ऐसी लड़की से हुई जो इस हालात , वातावरण की वास्तविक उपज है और वह उस में जी रही है । मैं जानता था कि इंसान मां के पेट में कुछ बनके नहीं आता है हां वह आता है तो कुछ सीखने।  पर वह हालात को देखकर ही सीखता है और उसमे स्वयं को रखकर देखकर वैसा बनता जाता है । यहां हालात बहुत अलग है । यहां की संस्कृति जीवन सब अलग है । कुछ सामान जरूर लगेगा लेकिन मैं जानता हूं कि खुदा के साथ ही रहकर ही लोगों को जीवन की सही राह पर ले आऊंगा।  हर वह बच्चा भगवान है और मैं उसका पुजारी । कहते हैं ईश्वर की पूजा से वह प्रसन्न होता है तो मैं उस विद्यार्थी रूपी ईश्वर को जरूर प्रसन्न कर लूंगा और उसको जगा लूंगा । मैं क्या करूंगा ईश्वर सब कुछ तो तू ही तू है,तू सब कुछ करेगा क्योंकि मुझ में भी तू है और मैं सिर्फ एक माध्यम हूं । जीवन के हकीकत को जानना उसे समझना इतना आसान नहीं है, पर हां अगर ईश्वर की नजर से लेकर देखेंगे ,सब में उसे देखने की अनुभूति कर पाएंगे तो आपको सब कुछ अंत में एक सा प्रतीत होगा।  अगर आपको सत्य का भान हो जाए तो यह संपूर्ण क्रियाएं वस्तुएं ईश्वर की विलासिता प्रतीत होंगी । जो हमें दिखाई देता है और उसका दर्शन एवं ज्ञान ही जीवन की सार्थकता है । 

 

समय अभी कुछ ऐसा ही चल रहा है अभी जिसमें मैं नहीं हूं है तो वही ईश्वर जो सब में है अचानक ऐसी ऐसी घटनाएं जो सोचा ना हो और उनका संयोग एवं योग समय को ऐसा रूप दे रहा है जिसमें मुझे कई वर्षों की अनुभूतियां कुछ पल में मिलती हुई प्रतीत हो रही हैं ।  उनको मैं अधिगम कर स्वयं में एक अलग परिवर्तन का आभास कर रहा हूं एवं संपूर्णता का अहसास हो रहा है । पल- पल सुख तो अचानक दुखों का तूफान कहीं से आ जाता है जो पूरी तरह बहा ले जाने को तैयार दिखाई देता है, पर मैं ईश्वर को पकड़े इन सब घड़ियों में उन अनुभवों को ग्रहण करता जा रहा हूं जो मुझे लगता है एक नया वास्तविक स्वरूप देगा । यद्यपि वह मुझे तड़पा के जलाकर पिघला देता है, पर रूप नया बना रहा है एवं मेरे इरादों को और मजबूत बना देता है । एक तरफ परिवारिक संबंधों एवं रिश्तो के एहसास को नजदीक से जानने का मौका दे रहा है तो वही समाज को समझने लोगों को जानने एवं उनमें बदलाव की तरकीब यह मुझे सिखा रहा है । जो मैं करना सोच रहा हूं वह उससे पूर्व स्वयं कुछ सामाजिक घटनाओं के रूप में होकर वह मेरी मदद हालात को बदलने में कर रहा है ।  मुझे पूरा विश्वास है कि मैं नहीं रहूंगा तो भी वह इस प्रकार मेरा साथ देकर , मुझे माध्यम बनाते हुए स्वयं सब कुछ करता जाएगा । 

 

मैं तो यही चाहता हूं एवं मेरे जीवन का लक्ष्य भी वही है परिवर्तन जो शाश्वत है । मेरी जिंदगी को अब वह रफ्तार देकर जमीनी लड़ाई के लिए मुझे तैयार कर रहा है एवं मुझे अब कुछ मांगने के लिए अपनों हेतु प्रेरित कर रहा है पराया यहां कोई नहीं क्योंकि ईश्वर तो सब में समाया है , जो अपना है , सबका वह है । यह समय अभी ऐसा है जो मुझे आसमान में ले जाकर सुख देता है तो वहीं जमीन में पटक कर पीड़ा भर देता है  तो क्षितिज में लाकर तटस्थ होकर सब देखना सिखाता है । पर जो कुछ भी हो वह मुझे मजबूत बना रहा है यह मैं अच्छी तरह जानता हूं । वास्तव में विद्यार्थियों को पुस्तकीय ज्ञान देना एक ऐसा ही काम है जैसे एक साइकिल को चलाना वह तभी चलेगा जब हम चलाएंगे अन्यथा वही का वही रहेगा स्थिर । आत्मज्ञान के बिना सब ज्ञान अधूरा है । इसको प्रदान करने के लिए हमें सामाजिक, राजनीतिक दर्शन एवं जीवन दर्शन का प्रयोग करना बहुत जरूरी है।  मैं वही कर रहा हूं एवं उसको मुझे आशा अनुरूप बदलाव एवं परिणाम मिल रहा है।  जिससे बालक आत्म प्रेरित होगा और उसमें स्व- गति  आएगी वही मेरी शिक्षा सार्थक हो पाएगी।  

 

मैं एक हकीकत का जिक्र कर रहा हूं मैं यहां आया तो मुझे कुछ विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए आग्रह किया गया जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया और मैं रोज शाम उन्हें पढ़ाया करता तारा जी के घर इस काम के लिए जाया करता रोजाना उसमें एक ऐसे विद्यार्थी से मेरा  मुलाकात हुआ जो सामाजिक अवहेलना एवं परिवेश का शिकार है , तथा स्वयं में हीनता की भावना से वह ग्रस्त है ।  मैंने देखा कि वह खाट के नीचे छिपा है एवं सभी विद्यार्थी उस पर हंस रहे हैं उसको मैंने बुलाया अपने पास पर वह नहीं आया और रोने लगा । तभी मैं जान गया उसकी स्थिति को और मैंने बाल-मनोविज्ञान का सहारा लिया । अन्य विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए कहा एवं उसके पास चुपके से गया और उसे अनार आम लिखने के लिए प्रेरित किया । वह लिखा और दिखाया अनमने ढंग से । वह कुछ नहीं जानता वैसे लिखा था क्योंकि उसको स्वयं के लिखने में भी संदेह था।  क्योंकि लोगों की हंसी से वह आतंकीत  था एवं स्वयं को वह भूल रहा था । मैंने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा वाह क्या मस्त लिखा है।  यह फलाना है यह ढिकाना है बोला वह सुनकर थोड़ा स्वयं पर यकीन किया ।  इसके बाद मैंने उसे थोड़ा समझाया कि वह पुस्तक को अच्छे से देख कर लिखे आगे वह लिखता गया और प्रशंसा का सिलसिला जारी रहा । कुछ विद्यार्थियों को लेकर मैंने एक योजना बनाई कि वह जो लिखा है उसमें यह वर्ण है मैं कहता और बच्चे मेरी बात पर हामी भरते और ताली बजाते जिससे उसके स्वयं के लिखने पर उसमें आत्मविश्वास का संचार होने लगा।  कुछ दिनों बाद मैंने देखा कि वह अब एक सामान्य विद्यार्थी की तरह हंसता, उसके बीच सिर उठाकर खेलता ,पढ़ता, लिखता एवं गाता नजर आया जो वास्तव में प्रशंसा की जीत है । इस दुनिया में मैं तो कहता हूं हर कोई प्रशंसा के प्यार को पाने के लिए जी रहा है । जिसके पाने पर वह स्वयं अच्छा बन जाता है एवं उसकी कमी उस में हीनता के भाव की बीज होती है जिसमें हमेशा कड़वा एवं विषैले फल ही लगते हैं जो समस्त मनोरोग का मूल  व कारण बन जाता है । यहां सीखता हर कोई है पर उनकी गति अलग-अलग होती है।  जिनमें धैर्य के साथ विश्वास महती आवश्यक है उसको गतिमान बनाने के लिए। 

 

 मैंने एक प्रयोगात्मक रूप से बच्चों की कल्पना शक्ति को जगाने एवं जानने का विचार किया और उनको एक कविता लिखने के लिए कहा एवं स्वयं भी लिखा शीर्षक था ” पंख मेरे होते तो मैं ” क्या-क्या करता यह लिखना है  कविता के माध्यम से बच्चों को बताया ।  यकीनन विद्यार्थियों ने सोच सोच कर ऐसी कविताएं लिखी जो विचारणीय थी । हरमन के अंदर कुछ छिपा है उसे खोजने के लिए, उसे जगाने, उगाने के लिए मेहनत तो करनी हमें पड़ेगी ना ।  इसके माध्यम से मुझे उनकी प्रवृत्ति मनोवृति एवं विचारों के विभिन्नता तथा मौलिकता से परिचित होने का मौका मिला निश्चित रूप से यह प्रयोग मेरे लिए अनोखा था एवं मन को खुश करने वाला ,प्रेरित करने वाला रहा । उनके मन की खेत में मैंने कल्पना की बीज बोया और यकीन मानिए उससे ऐसे पौधे उगे जो प्रकृति के हर रूप को इंगित करने लगे । उनके फूल एवं फल के क्या कहने जिसकी स्वयं की एक महक, रंग ,बनावट तथा स्वाद जो हर किसी से अलग एवं मौलिक तथा प्राकृतिक थी । उसके बीजों को मैंने बचा कर रखा है एवं अगले  शिक्षण- सत्र में जब मानसून आएगा तब मैं उसे जरूर बोऊँगा जिसके खुशबू ,खूबसूरती को हर कोई देखेगा एवं कुदरत का एहसास करेगा । मुझे ऐसा विश्वास है वास्तव में मानव ने आज जो कुछ ज्ञान प्राप्त किया जो सीखा है उसमें कल्पना शक्ति की माता सर्वोपरि है।  वह कल्पना शक्ति के उड़ान से ही यथार्थ ज्ञान के  तक पहुंच पाया है और पहुंचता जा रहा है।  बच्चों में कल्पना शक्ति को जागृत किए बिना हम उनको ज्ञान के लिए उड़ना नहीं सिखा सकते । उसकी कल्पना ही उसे विचार करने के लिए ,सोचने के लिए केंद्रित करती है, नियंत्रित करती है एवं मन को वह दिशा देती है।  वह उसे अपने अनुरूप करना सीखता है । अपनी मौलिकता से वह परिचित कल्पना के प्रकाश से होता है जिसे वह इस धरातल पर व्यक्त करता है दूसरों से वह जो भिन्नता के साथ एक विशिष्टता लिए हुए हैं । इस तरह आत्म संतोष को वह हमारी प्रशंसा एवं सराहना के द्वारा प्राप्त करता है एवं उसकी मनोबल बढ़ती है जिस बल से वह दुनिया को जीतने के सपने कल्पना से देखता है तथा उसे अमलीजामा पहनाने लगता है । वास्तव में देखा जाए तो संपूर्ण जगत एक कल्पना है और जीवन भी एक कल्पना ही है जो हमें ईश्वर की प्रतीत होती है ।

 

26 जनवरी 2009 में ऐसा कार्यक्रम हुआ शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला चिकनी में कि लोग देखते रह गए एवं विद्यार्थियों के मौलिक गुण से परिचित हुए जो उन में छिपा था । इस कार्यक्रम को सफल बनाने में गांव वासियों का भी पूरा सहयोग रहा।  हमें विश्वास है कि अगले वर्ष के कार्यक्रमों को देखने गांव के बहुत  से लोग आएंगे।  कोई खेल- खेल के तो कोई गा के तो कुछ पढ़ के, कुछ देख के, कुछ सुनके तथा कुछ हंसते हुए तो कुछ रोते हुए सीखते हैं । सब में सीखने के तरीके अलग-अलग होते हैं और हमारा कार्य उनमें सीखने की प्रक्रिया को जानना है।  विद्यार्थी को इसमें किस तरह से देखते हैं यह हमारा नजरिया है।  ऊर्जा संरक्षण का तीसरा नियम भी यही कहता है कि प्रकृति में ऊर्जा नियत है वह ना तो उत्पन्न की जा सकता है ना ही नष्ट किया जा सकता  है ,उसे सिर्फ एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।  इस कथन को हम विद्यार्थियों पर भी लागू कर सकते हैं कि उनमें एक ऊर्जा ऐसी है जो उसकी मौलिकता है जो उसका विशिष्ट स्वरूप है उसको ही जानना , समझना  एक शिक्षक की सफलता है  । उस ऊर्जा के रूप को समझने के बाद हम उसे और अन्य रूपों में भी  परिवर्तित कर सकते हैं समाज के कल्याण के लिए  उसको हुनरमंद बना सकते हैं । विद्यार्थियों को इसके द्वारा हम जानकर उसके उर्जा के एक रूप को जगा कर उसे दूसरे रूप में परिवर्तित कर समाज कल्याण के लिए प्रेरित कर सकें यह हमारा परम लक्ष्य होना चाहिए एक शिक्षक के नाते । 

 

शिक्षकों को राष्ट्र का निर्माता कहा गया है वास्तव में एक शिक्षक के लिए पढ़ाने का तात्पर्य है स्वयं के द्वारा विद्यार्थियों को पढ़ना एवं जानना कि वह क्या है ? उसके अंदर क्या है ? और उसे उसको कैसे बताएं ,दिखाएं ?। हम उसके मौलिक स्वरूप से परिचित होकर उसके उस विशेष गुणों को जगा कर जिसे ईश्वर ने उसे दिया है जो उसकी मौलिकता है, उसे स्वयं दर्पण बन कर उसको परिचित कराना ही शिक्षक का सर्वोपरि धर्म है ,कर्तव्य है एवं परम लक्ष्य भी है ,तभी हमारी शिक्षण की सार्थकता भी है । बच्चों में खेलना एक स्वाभाविक प्रकिया  है , वह उनकी मौलिक गुण है ,प्रकृति है जिसमें वह सब कुछ सामाजिकता एवं उसकी आधार स्वरूप विचारों एवं भावनाओं को सीखते हैं । उसी प्रकृति का हमने उपयोग उनसे ही उनको सिखाने के लिए  किया । उनमें प्रतियोगी भावना जगाने का सहयोग को सीखने का एवं हार -जीत के अनुभव से उनमें परिपक्वता लाने की योजना बनाई।   पूरे स्कूल के विद्यार्थियों को दो टीम में बांटा एवं क्रिकेट खिलाया टीम की हमने स्थाई घोषणा कर दी जिससे उनमें हम की भावना के उदय के साथ उनकी प्रतिस्पर्धी रणनीति बने। जिसे वह अपनी हार जीत से तय कर सकें और उसके अनुरूप खेलकर सीखें । हमारी योजनाएं बिल्कुल कारगर साबित हुई और हमारी अपेक्षाएं फलीभूत होने लगी फिर हमने दोनों टीमों से कुछ पात्र चयनित कर एक टीम बनाया और उसको  दूसरे स्कूल के टीम के साथ खिलाया । शुरू में हमने सहभागी की तरह उनका सहयोग साथ देकर किया पर बाद में हमने उसको खुले आकाश के नीचे स्वयं को जानने के लिए छोड़ कर उनको खेलते हुए देखा और वह आज बड़े प्यार से उत्सुकता के साथ खेलते नजर आते हैं । 

 

मेरा अटैचमेंट शासकीय हाई स्कूल धूर में हुआ जहां कुदरगढ़ के प्रसिद्ध शक्तिपीठ माता का मंदिर है । यह बहुत ही शांति  एवं रमणीय स्थल है जो ओड़गी  मुख्यालय से पश्चिम दिशा में 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थल सैलानियों को शक्ति एवं भक्ति तथा प्राकृतिक रूप से आकर्षित करता रहा है।  यहां आकर मैंने पढ़ाने की नई विधाओं को सीखा एवं सहयोगी के रुप में श्री राधेश्याम चौहान सर,  श्री लल्लन सर श्री उइके सर  एवं  दिवाकर जयसवाल थे । हमारे कमांडर के रूप में श्री जेठू राम सर थे  जो काफी अनुभवी एवं सादगी भरे कड़क थे । उनकी उम्र एवं संजीदगी एवं स्वास्थ्य के प्रति सावधानी देखते बनती थी । यहां मैंने अंग्रेजी के अध्ययन के लिए खुद अध्ययन किया एवं पढ़ाया।  पढ़ाते समय मुझे यह एहसास हुआ कि इंग्लिश में वोकेबलरी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । अगर उस पर अच्छे से ध्यान देकर बच्चों को उसे याद करा जाए तो मुझे लगता है उसके हायर सेकेंडरी तक वह इंग्लिश में अवश्य बोलने में कामयाब हो जाएगा।  ग्रामर के साथ अगर विद्यार्थियों के पास शब्दों  का ज्ञान है एवं वह ग्रामर से परिचित हो गया है तो वह आसानी से इसका उपयोग स्वयं उत्तर लिखने में खुलके  कर सकता है । 

 

विद्यार्थियों को मैंने विषय के एक- एक टॉपिक प्रत्येक विद्यार्थियों को अलग -अलग से दिया और उसके बारे में यहां आकर बोलने को कहा जिससे हमने पाया कि उनमें स्वाध्याय के प्रति लगन बढ़ने लगी है । साथ ही वे बोलने एवं अभिव्यक्ति की शैली सीख रहे हैं।  वह विश्वास के साथ सफल होकर खुश हो रहे हैं , उनके मन में अब पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ रही है । यह कार्य चुंबकत्व की भांति ज्ञान को अपनी और आकर्षित करने की क्षमता में वृद्धि हेतु कारगर सिद्ध हुआ । इस गृह कार्य से उनके सामने एक सीढ़ी नुमा छोटा सा लक्ष्य  होता है जिसको वे आसानी से पूरा करते हुए चढ़ते हैं एवं उनमें विश्वास पैदा होता है कि मैं अच्छा पढ़ लिख रहा हूं , बोल रहा हूं तथा सीख रहा हूं । इस तरह वे छोटी-छोटी सीढ़ीनुमा लक्ष्य को चढ़ते हुए मंजिल तक पहुंच जाते हैं । इस विधि का सबसे बड़े महत्वपूर्ण लाभ हैं कि उनमें आत्मविश्वास का विकास होना । इस विधि के कई लाभ हो रहे हैं बच्चों के लिए तथा  हमारे लिए एवं उनके पालकों के लिए जो निम्न है :- 

 

1)  बच्चों में ध्यान व एकाग्रता का विकास हो रहा है।

 

 2)  उनमें ध्यान से सुनने की प्रवृत्ति बढ़ रही है  ।

 

3)   उनमें लक्ष्य के प्रति समर्पण की भावना का विकास हो    रहा है  ।

 

4)   प्रतिस्पर्धा की भावना का विकास हो रहा है  ।

 

5)    अभिव्यक्ति की चाह बढ़ रही है  ।

 

6)   समूह भावना में वृद्धि हो रही है क्योंकि जहां प्रोजेक्ट या प्रयोगात्मक कार्य हैं वहां एक समूह को यह सौंपा जाता है  ।

 

7)    समय का लाभ हो रहा है जाहिर सी बात है अगर हम पढ़ाते तो एक या दो टॉपिक पर समय दे पाते इसमें अनेक टॉपिक कम समय में होता है  ।

 

8)  विविधता का विकास हो रहा है एवं व्यक्तित्व विकास भी हो रहा है ।

 

9)  वाकपटुता में विद्यार्थी निपुण हो रहे हैं।

 

10)   तर्क क्षमता का विकास हो रहा है ।

 

11)  अनुशासन से पाठशाला चलती है अतः उन में अनुशासन का भी विकास हो रहा है ।

 

12)   नेतृत्व क्षमता का विकास हो रहा है ।

 

13)   हम एक मार्गदर्शक की तरह देखकर उन को गाइड कर रहे हैं ।

 

14)  उनमें पहल करने की क्षमता का विकसीट हो रही है ।

 

15)  उनमें स्वायत्तता एवं बौद्धिक गतिशीलता भी हो रही है ।

 

16)   समय प्रबंधन का ज्ञान हो रहा है, बोलने के लिए एक समय दिया जाता है जिसमें वह अपनी लक्ष्य की पूर्ति करते हैं।

 

कहते हैं चुनौतियां ही अवसर को सृजित करती हैं एवं दक्षता के विकास को भी सुनिश्चित करती हैं ।इस टॉपिक अध्ययन प्रणाली का ख्याल मेरे मन में तब आया जब मैं शासकीय हाई स्कूल दूर से अटैचमेंट के बाद शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला चिकनी (मेरी मूल शाला) में वापसी हुई । उस समय कुछ दिन के पश्चात हमारे प्रधान पाठक श्री शंकर सिंह नेताम जी चिकित्सा अवकाश पर रहे जिससे विद्यालय एकल शिक्षकीय  हो गई । यह चुनौती का समय था जिसके लिए मैं मानसिक रूप से पहले से ही तैयार था । मेरे लिए यह एक अवसर के रूप में  आया जिसे मैंने इस प्रणाली का सहारा लिया और उसमें सफल भी रहा । कौन से विद्यार्थी को क्या टॉपिक दिया गया है उसे रजिस्टर में नाम अंकित कर उसके सफलता का आकलन करने से उसके अभिव्यक्ति एवं शैली के विकास का सही मूल्यांकन होता है एवं उपलब्धि का पता चलता है।  इसी प्रणाली का मैंने उपयोग किया एवं विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास हेतु मेरा प्रयास सदैव जारी रहा जिसमें सफलता के नए-नए आयामों को मैंने प्राप्त किया और मुझे अचंभित करने वाली विद्यार्थियों की स्वाध्याय की गतिविधि देखने को मिली । वही इस विषम परिस्थिति में विद्यार्थियों के नेतृत्व क्षमता के कारण मैंने तीनों क्लास में अध्ययन अध्यापन को सफलतापूर्वक निर्वाह कर सका। उस समय उक्त विद्यालय में 67 विद्यार्थी अध्ययनरत रहे जो मेरे लिए अविस्मरणीय है और सदा रहेगा । 

 

 मंगलवार का दिन था ,मार्च का महीना ,चारों ओर पलाश के फूल दिल में अंगारे की भांति प्रेम की भावनाओं के रस को खौला रहे थे जिसकी वास्तविक उष्णता मन में एक ओज व रचना लिए हुए गहराई तक धंसती जा रही थी । लव कुमार साथ में आगे मोटरसाइकिल चला रहा था और मैं पीछे बैठा प्रकृति की ओर निहारते बातें कर रहा था । मन में कहीं ना कहीं एक कुलबुलाहट सी थी पर उसे मैं समझ नहीं पा रहा था।  दसवीं की परीक्षा उसी दिन सुबह था और हम दोनों परीक्षा ड्यूटी करने स्कूल जा रहे थे मैंने दसवीं की परीक्षा में सामाजिक विज्ञान  विषय का पेपर देखा जो काफी अच्छा था। पर इस परीक्षा में केंद्र में आए विद्यार्थी शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल लांजीत में आस पास के अन्य हाई स्कूल के भी विद्यार्थी परीक्षा दे रहे थे ।  लोकसभा अध्यक्ष के कार्य ,संसद के अंग,  राज्यसभा , मुख्यमंत्री  आदि को नहीं लिख पा रहे थे न ही लड़कियां अपनी स्थिति के बारे में लिख पा रहे थे  परीक्षा में परीक्षार्थी । वह सब मक्खी पर मक्खी मारने वाले थे । लड़कियों द्वारा महिला की स्थिति में सुधार के लिए उपाय   प्रश्न को हल नहीं कर पाना वास्तव में एक विचारणीय प्रश्न था जो मेरे मन में  कौंधने लगा।  उसको देख कर मन में एक टीस उठती कि यह क्या हो रहा है ? शिक्षा प्रणाली में कमी कहां है ? इन्हें कैसे बताया जाए  ? ये सब बातें मन को कचोटती रहीं । सामाजिक विज्ञान विषय को  अधिकांश विद्यार्थी बोरिंग समझते हैं । इस विषय में टीचिंग ऐड्स विज्ञान की तरह कम होते हैं यही कमी मन को कुल बुलाती रही और मैं लव कुमार को स्थिति से अवगत करा रहा था कि कैसे पढ़ाया जाए तभी एक उपाय मन में आया कि क्यों ना इस पढ़ाई में बच्चों को शामिल करते हुए उनको सहभागी बनाकर , उन्हीं के बीच इसको अभीनयात्मक शिक्षण पद्धति से पढ़ाया जाए । जिसमें  विद्यार्थी स्वयं भाग  लेकर सहभागी अवलोकन करते हुये समझ एवं बुद्धि का विकास करेगा। यह पढ़ाई या शिक्षण जीवंत रहेगा उसके मानस पटल पर सदैव । शिक्षक राष्ट्रपति बने और बच्चों को संगठित कर एक लोकसभा एवं दूसरा राज्यसभा बनाएं उसमें से एक को लोकसभा अध्यक्ष एवं दूसरे को उपराष्ट्रपति जो राज्यसभा अध्यक्ष कौन होते हैं चुना जाए एवं गतिविधियां के माध्यम से उसे संचालित किया जाए।  इससे विद्यार्थियों में मनोरंजन के साथ पढ़ाई, शिक्षण नेतृत्व क्षमता , समाज की समझ  व सुनने ,बोलने, तर्क करने की शक्ति का विकास होगा जो उसके अधिगम को रोचक एवं कारगर बनाएगा । साथ ही विद्यार्थियों में राजनीतिक क्षमता का भी विकास होगा जो आज की सबसे बड़ी मांग है।  मैंने बच्चों को इस प्रक्रिया का अनुप्रयोग किया और इसका अच्छा परिणाम निकला । 

 

बच्चों को आज इंग्लिश के वोकैबलरी याद करने के लिए सबको एक अल्फाबेट के हिसाब सेविद्यार्थियों के  अनुसार बांट दिया और उनके सामने एक छोटा लक्ष्य रखा।  वह खुश हुए और सभी एक साथ पूर्ण भी हो रहे हैं । उनका शब्द ज्ञान दिनों दिन बढ़ता जा रहा है ,हर कोई हर किसी का सहयोग कर रहा है । पर उनको यह मालूम नहीं है क्योंकि भाषा अवचेतन से चेतन की ओर आती है, विकसित होती है । उसके लिए माहौल की आवश्यकता होती है जो मैंने इस माध्यम से सृजित किया । उसके पश्चात मैंने विद्यार्थियों में शब्दांतक अंताक्षरी खेलने का खेल शुरू कराया जिससे विद्यार्थियों में इसकी और अधिक रोचकता बढ़ने लगी । उनमें शब्द ज्ञान के प्रति भंडार भरने का ललक बड़ा जो एक सफलता को दर्शाता है । 

 

दिनांक 6 अगस्त 2018 को ललित संकुल के शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला ललित में शनिवारीय बैठक के तहत सुबह 8:00 बजे  ललित एवं इंदिरा संकुल का मीटिंग एक साथ रखा गया था । मैंने सुबह 8:00 बजे श्री विद्याधर पटेल से जो संकुल शैक्षिक समन्वयक के पद पर (ललित संकुल) हैं  से मुलाकात रोड में करते हुये की और बताया कि मैं मीटिंग में आ रहा हूं। सुबह 9:00 बजे मीटिंग कक्ष में पहुंचा आज माहौल श्रद्धा वान लभते ज्ञानम् जैसा था । सभी शिक्षक खड़े हुए बैठने को कहते हुए मैं भी बैठ गया बाई ओर विद्याधर चर्चा करते हुए दाएं तथा  श्री राजेंद्र मेहर संकुल शैक्षिक समन्वयक इंदिरा संकुल सामने दाई ओर  कोने में श्री सेंडे सर संकुल प्रभारी ललित संकुल बैठे रहे। शिक्षक डायरी उसमें भी गतिविधि काला में कैसे लिखना है ? क्या लिखना है  ?  पर बातें चल रही थी । विषय कक्षा पहली में गिनती सिखाना शिक्षकों से विचार पूछे गए 3 शिक्षकों ने बताया उसके बाद मैंने समय मांगते हुए चर्चा की हम पाठ योजना बनाते हैं कि नहीं एवं यह क्यों महत्वपूर्ण है ? यह पूछा सभी उपस्थित शिक्षकों से । कुछ उत्तर मिले उसके बाद मैंने अपना दृष्टिकोण रखा । लोग कार्य को नियोजित या अनियोजित दो तरह से करते हैं । नियोजित तरीके से करने पर हमारा लक्ष्य प्राप्ति की संभावना प्रगाढ़ हो जाती है या लक्ष्य प्राप्ति की प्रायिकता बढ़ जाती है ।वहीं अनियोजित तरीके से करने पर अनिश्चितता होती है लक्ष्य के संबंध में यही अंतर दोनों में है । इसलिए हमें शिक्षक डायरी पूर्व से बनानी चाहिए नियोजित रूप से । मैंने विद्यार्थियों से हमारा व्यवहार कैसे हो इस हेतु अबोध एवं बोधी  शब्द की विस्तृत व्याख्या की । विद्यार्थी अबोध है कि शिक्षक , दोनों में  बोधी कौन है ? जैसे प्रश्न को मैंने शिक्षकों के लिए रखा जिससे सभी शिक्षक के मन में एक कौतूहल उत्पन्न हुआ और सबका ध्यान अब मेरी ओर आकर्षित किया। अपने अनुभव मैंने साझा किया की  कैसे ललित संकुल के  शासकीय प्राथमिक शाला ललित में एक कक्षा में एक वाकया सामने आया । वह विद्यार्थी जो पढ़ना नहीं जानता या कमजोर हैं  हमें हताश होने की कोई आवश्यकता नहीं है , हम उसमें उसके अलावा उस हुनर को खोजें जो उसके पास है । संसार में सभी  कुछ ना कुछ गुण लेकर  पैदा होते हैं , यह प्रकृति उन्हें देती है । प्रत्येक विद्यार्थी  के अंदर उसकी मौलिकता जिसे हम आत्मा कह सकते हैं विद्यमान होती है जो उसका वास्तविक स्वरूप होता है । यहीं एक विद्यार्थी को मेरे द्वारा पूछने पर वह चुपचाप खड़ा रहा तभी  मैडम प्राची मिश्रा ने कहा कि वह कुछ नहीं जानता सर उक्त प्रश्न मेरे मन में गूंजने लगा और मैंने बड़े धैर्य से कहा ऐसा तो हो ही नहीं सकता । मैम को कहा चलो  इसको खोजते हैं मैडम ने मुझे आश्चर्य से देखा मैंने फिर बात दोहराई की चलो आज इस विद्यार्थी को हम खोजते हैं । उसके बाद मैडम मेरे आशय को समझीं और फिर उसके काफी को हमने देखा शुरू किया शुरुआत के पन्नों में टूटी-फूटी राइटिंग एवं लेख से कुछ लिखा था हम पन्ने पलटते – पलटते पीछे के तरफ चल दिए , देखा जहां एक अलग संसार,  एक अनोखी दुनियां देखा।  उसको देखकर हैरान एवं खुश हुए कि इस विद्यार्थी के गुण को अंततः हमने आज पाया , उसको खोज निकाला  जो दूसरों से श्रेष्ठ है वह कई सुंदर चित्र बनाया था । प्राकृतिक रूप से उसके अर्थ भी पूछने पर वह बता रहा था और उस कक्षा के सभी विद्यार्थियों से हमने चित्र बनाने के बारे में पूछा सबसे दिखाने को कहा ताकि  हमें पता चले कि उस कक्षा में उसके समान कोई और विद्यार्थी तो नही है।पर वह श्रेष्ठ था । उसके चित्रकारी के बारे में अन्य विद्यार्थियों को पूछने पर बताया गया कि यह सबसे सुंदर चित्र बनाता है । वास्तव में उसको जो सम्मान मिलना चाहिए, जो सराहना होनी चाहिए उसका जिसका वह हकदार है अभी तक उसे नही मिला था । आज वह बहुत खुश है उसकी दुनिया बिल्कुल अलग हो गई क्योंकि जो कुछ ना जानने  वाला  किसी दूसरे विधा में सबसे ज्यादा जानकर हो गया है ,आज ज्ञानी बन गया है ,सब तरफ उसके लिए तालियां बज रही थी। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की झलक दिखने लगी और वह मुस्कुरा रहा था ।  इस तरह ना जाने कितने विद्यार्थी हैं जो आज भी सामने नहीं आ पाए हैं हकदार होने के बावजूद यह हमारे लिए एक प्रश्न है । हमारे कक्षा शिक्षण को कहीं ना कहीं जो सवाल करती है एवं अपने जिम्मेदारी का  भी हमें भान कराती है कि हम कहां तक सफल हो रहे हैं ? । 

 

हमें उनके हुनर को खोजना होगा केवल पुस्तक पढ़ाने को अब शिक्षा नहीं माना जाता है । शिक्षा का अर्थ व्यापक हो गया है । हमें भी उसके अनुरूप व्यापकता लानी है स्वयं के साथ और हमें भी अब संज्ञानात्मक के साथ-साथ

 सह- संज्ञानात्मक क्षेत्र को भी शिक्षा में शामिल अनिवार्यतः करते हुए बहु आयामी शिक्षा को सार्थक बनाना है। यह बातें मैंने रखी , सह-संज्ञानात्मक क्षेत्र के अंतर्गत यह सारी गतिविधियां चित्रकला ,संगीत ,गीत व खेल गतिविधियां आदि आती है जो शिक्षा को व्यापकता प्रदान करती हैं। 

 

 सुखी व्यक्ति , खुश व्यक्ति गलतियां बहुत ही कम करता है दुखी निराश लोगों की अपेक्षा । गलतियां अक्सर होती हैं या कर जाते हैं जो दुखी एवं निराश और हताश होते हैं।  इसलिए विद्यार्थियों को खुश करिए खुशी से पढ़ाइए एवं एक खुशनुमा माहौल सकारात्मक सोच पैदा कीजिए तब हम सफलता की ओर अग्रसर होंगे।  खेल सबसे बड़ा ध्यान है मानसिक व शारीरिक परिशोधन की कला है , इसको बढ़ावा दो । आप भी अपने अंदर के विद्यार्थी को सदैव जीवित रखो आपका कार्य आनंदमय  हो जाएगा । परिणाम बेहतर होगा यह बातें मीटिंग में बताया । इस मीटिंग का प्रतिसाद  बहुत ही सुंदर रहा ऑपरेशन ” हुनर  ” की आवश्यकता है अब हुनरमंद विद्यार्थी खोजना हमारा लक्ष्य होगा जो इस मंच के हकदार हैं , उन को खोजते हुए मंच प्रदान करना और उनका सम्मान करना हमारा शिक्षण का भी प्रमुख ध्येय  होना चाहिए यह बातें बताई गई । जिसको सभी शिक्षक बड़े ध्यान से सुन रहे थे एवं उसका महत्व समझ रहे थे ।

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