Rat ki baat / रात की बात

ये रात भी  कितनी राजदार है

सबकुछ अपने में छुपा लेता है

 

जो सूरज छिपा  देता है अकेले

उसको दामन में मुस्कुरा देता है

 

कितने  नकाब ओढ़े हुए हैं लोग

पर रात है की  सब गिरा देता है

 

कराहती रहती  है दिन भर ये जिंदगी

रात ही है जो हर दर्द को सुला देता है

 

ये रात न होती तो क्या होता ?

न तारों  की  हंसी यहां होती 

न जुगनूओं के  जज़्बात  होते 

लोग किसे सब भुलाके सोते

उजाले में उजाला की तलाश हो कैसे ?

 

समंदर से  प्यास  बुझे  तो  बुझे  कैसे ?

 

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